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Showing posts from June 15, 2014

pita ko dohanjali: sanjiv

पितृ दिवस पर-  पिता सूर्य सम प्रकाशक : संजीव  *  पिता सूर्य सम प्रकाशक, जगा कहें कर कर्म  कर्म-धर्म से महत्तम, अन्य न कोई मर्म   * गृहस्वामी मार्तण्ड हैं, पिता जानिए सत्य  सुखकर्ता भर्ता पिता, रवि श्रीमान अनित्य  * भास्कर-शशि माता-पिता, तारे हैं संतान  भू अम्बर गृह मेघ सम, दिक् दीवार समान  * आपद-विपदा तम हरें, पिता चक्षु दें खोल  हाथ थाम कंधे बिठा, दिखा रहे भूगोल  * विवस्वान सम जनक भी, हैं प्रकाश का रूप  हैं विदेह मन-प्राण का, सम्बल देव अनूप  * छाया थे पितु ताप में, और शीत में ताप छाता बारिश में रहे, हारकर हर संताप  * बीज नाम कुल तन दिया, तुमने मुझको तात अन्धकार की कोख से, लाकर दिया प्रभात  * गोदी आँचल लोरियाँ, उँगली कंधा बाँह  माँ-पापा जब तक रहे, रही शीश पर छाँह  * शुभाशीष से भरा था, जब तक जीवन पात्र  जान न पाया रिक्तता, अब हूँ याचक मात्र * पितृ-चरण स्पर्श बिन, कैसे हो त्यौहार  चित्र देख मन विकल हो, करता हाहाकार  * तन-मन की दृढ़ता अतुल, खुद से बेपरवाह  सबकी चिंता-पीर हर, ढाढ़स दिया अथाह  * श्वास पिता की धरोहर, माँ की थाती आस हास बंधु, तिय लास है, स