पितृ दिवस पर- पिता सूर्य सम प्रकाशक : संजीव * पिता सूर्य सम प्रकाशक, जगा कहें कर कर्म कर्म-धर्म से महत्तम, अन्य न कोई मर्म * गृहस्वामी मार्तण्ड हैं, पिता जानिए सत्य सुखकर्ता भर्ता पिता, रवि श्रीमान अनित्य * भास्कर-शशि माता-पिता, तारे हैं संतान भू अम्बर गृह मेघ सम, दिक् दीवार समान * आपद-विपदा तम हरें, पिता चक्षु दें खोल हाथ थाम कंधे बिठा, दिखा रहे भूगोल * विवस्वान सम जनक भी, हैं प्रकाश का रूप हैं विदेह मन-प्राण का, सम्बल देव अनूप * छाया थे पितु ताप में, और शीत में ताप छाता बारिश में रहे, हारकर हर संताप * बीज नाम कुल तन दिया, तुमने मुझको तात अन्धकार की कोख से, लाकर दिया प्रभात * गोदी आँचल लोरियाँ, उँगली कंधा बाँह माँ-पापा जब तक रहे, रही शीश पर छाँह * शुभाशीष से भरा था, जब तक जीवन पात्र जान न पाया रिक्तता, अब हूँ याचक मात्र * पितृ-चरण स्पर्श बिन, कैसे हो त्यौहार चित्र देख मन विकल हो, करता हाहाकार * तन-मन की दृढ़ता अतुल, खुद से बेपरवाह सबकी चिंता-पीर हर, ढाढ़स दिया अथाह * श्वास पिता की धरोहर, माँ की थाती आस हास बंधु, तिय लास है, स