डॉ अरुणा कपूर आप एक व्यक्ति को देख रहे हैं, यह व्यक्ति कमर से आधा झुका हुआ है । आप कयास लगाते हैं कि या तो अब वह बैठने वाला है, या तो सीधा खडा होने वाला है! लेकिन वह आगे कोई भी हरकत नहीं करता, वैसा ही आधा झुका हुआ रहता है। इसे ज्योतिषी कहते है। थोडी ही देर बाद उसे आस-पास कुर्सी नजर आती है तो वह बैठ जाता है और कहता है 'मै बस! बैठने ही वाला था' उसे सडक दिखाई देती है तो सीधा हो कर चलना शुरु कर देता है। कहता है ' मै बस..जाने ही वाला था ' उसे नदी या तालाब दिखाई देता है, तो सीधे उसमें छ्लांग लगा कर कहता है - ' मैं नहाने की ही सोच रहा था ' इस तरह से यह ज्योतिषी चौतरफा देखते हुए सबसे नजदीकी तत्व के साथ सांठ-गांठ बना लेता है। मेरे कहने का मतलब साफ है, ज्योतिषियों की भविष्यवाणी अधर में लटकी होती है ।'होने' से या ' नहीं होने' से ज्यादा होने और न होने की 'संभावना' पर विशेष जोर दिया जाता है। उनकी भविष्यवाणी के मुताबिक घटित होता ही है! 'संभावना' का बखूबी इस्तेमाल जो किया होता है। मुझे याद है...कुछ ही साल पहले मैंने एक चैनल पर प्रख्यात ज्योतिषी