मौजूदा दौर में सहिष्णुता, उदारता और आपसी सौहार्द के ऊपर असहिष्णुता, कट्टरता और बदले की भावना का ज्यादा बोलबाला है। केवल कट्टरतावादी शक्तियों का ही वैसा बर्ताव नहीं है, उनके मुकाबले में उभरी प्रतिरोध की शक्तियाँ भी अक्सर असहिष्णुता, कट्टरता और वैमनस्य से परिचालित होती हैं। दुनिया और भारत दोनों के स्तर पर यह परिघटना देखी जा सकती है। आधुनिक सभ्यता के इस दौर में हृदय के प्रेम के लिए कोई स्थान नहीं छोड़ा गया है। यह मानते हुए कि वे सब सामंती युग की भाववादी धारणाएँ हैं। जबकि हृदय के प्रेम को भक्तिकालीन कवियों ने जीवन के केंद्र में स्थापित करने का अनूठा और अभूतपूर्व उद्यम किया था। या तो हम यह कहें कि भक्तिकालीन कवियों का वह उद्यम निरर्थक था या आज के युग की समस्याओं और चुनौतियों के लिए उसकी सार्थकता स्वीकार करें। हमें लगता है कि भक्तिकाल की एक धारा के वाहक सूफी कवियों और दार्शनिकों के प्रेम, त्याग, अपरिग्रह और भाईचारे के जीवन दर्शन का स्मरण करना प्रासंगिक है। समता, स्वतंत्रता और बंधुता के आधुनिक विचारों को मध्यकालीन सूफी साधकों, संतों और साहित्यकारों के दर्शन से काफी सहायता मिल सकती है। दरअसल अब