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Showing posts from March 22, 2009

है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है ...

है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है ..... यह कथन मुझे रात में याद आ रहा था । रात में बिजली चली गई थी , कुछ पढ़ने का मन भी कर रहा था पर आलस की वजह से बाहर जाकर मोमबती लाने में कतरा रहा था । तभी दिमाग में यह बिचार आया और भाग कर मोमबती लेने चला गया । बिजली काफी देर तक नही आई .... इसी बिच मैंने कुछ पढ़ लिया । यह एक छोटी सी घटना है । पर इसका अर्थ काफी बड़ा है । जीवन में कई ऐसे मौके आते है जब हम अँधेरी रात का बहाना बना काम को छोड़ देते है । माना की समाज के सामने चुनौतिया ज्यादा है और समाधान कम । तो क्या हुआ ? यह कोई नई बात तो है नही .... हमेशा से ऐसा ही होता रहा है । आम आदमी की चिंता करने वाले काफी कम लोग है । गरीबों के आंसू पोछने वाले ज्यादातर नकली है ... तो क्या हुआ , आपको कौन मना कर रहा है की आप असली हमदर्द न बने । मै समझता हूँ की यह ख़ुद को धोखा देने वाली बात हुई । एक चिंगारी तो जलाई ही जा सकती है .... इसके लिए किसी का मुंह देखने की जरुरत नही है । परिस्थितिओं का रोना रो रो कर तो हम बरबाद हो चुके है । अब और नही ..... यह शब्द दिल से जुबान पर आना ही चाहिए । सोचता हूँ , अँधेरी रात का बहाना ह

ग़ज़ल ( महसूस )

तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हूँ महसूस हुआ है की आपको देख रहा हूँ। ऐसा भी नही है तुझे याद करू मैं ऐसा भी नही है तुझे भूल गया हूँ । शायद यह तकब्बुर की सज़ा मुझको मिली है उभरा था बड़ी शान से अब डूब रहा हूँ । ए रात मेरी समत ज़रा सोच के बढ़ना मालूम है तुझे मैं अलीम जिया हूँ । तन्हाई में जब जब ................ महसूस हुआ की तुझे देख रहा हूँ ।

ग़ज़ल ( दर्द)

मिलना था इत्तेफाक बिचरना नसीब था वो इंतना दूर हो गया जितना करीब था। बस्ती के सारे लोग आतिश परस्त थे घर जल रहा था मेरा समंदर करीब था। दफना दिया मुझे चांदी के कब्र में जिस लड़की से प्यार करता था वो लड़की गरीब थी। मरयम कहा तलाश करू तेरे खून को जो हाल कर गया मेरा वो बहुत खुश नसीब था। मिलना था इत्तेफाक बिचादना नसीब था वो इतना दूर गया जितना करीब था।

बुश पर एक बार फिर जूता हुआ मेहरबान

अमेरिकी भूतपूर्व राष्ट्रपति बुश पर जूता एक बार फिर मेहरबान हुआ , अबकी बार उनका सवागत कनाडा के एक जलसे को वो संबोधित कर रहे थे वहां पर कुछ युवकों ने जूतों से उनका ज़ोरदार स्वागत किया जिससे पुरे सभा में खलबली मच गई कुछ लोगों को गिरिफ्तार किया गया है उनसे पूछ गूच चल रही है , आख़िर बुश ही क्यों इस के शिकार हो रहे है जहा भी जाते है लोग उनके स्वागत के लिए फूल माला तो दूर जूते ही लिए तय्यार खड़े रहते हैं , बात बिल्कुल जगजाहिर है की उनके तानाशाही शाशन से कोई भी देश की जनता खुश नही थी , सभी को मालूम था वो जो कर रहे है वो देश के हित के नही बलकी इंसानियत को बरबाद कर रहे है ऐसा करके उनके दिल को सुकून पहुँचा हो लेकिन किसी भी देश की जनता को यह नागवार गुजरी , वो यह बिल्कुल भूल गए थे की जबतक उनकी गद्दी कायम रहेगी तब तक वो तानाशाह को जींदः रख payenge लेकिन कब तक उनकी गद्दी रहती akhirkaar tanachahi शाशन का अंत होना था और huwaa , जो जनता कब से उनके लिए नफरत लेकर baithi थी जूतों से स्वागत iraq से शुरू हुवा और कांदा तक ख़त्म होने का नाम ही नही ले रहा है , इसीलिए महोदय बुश जी की अक्ल में काश यह बात आगई होती

नहीं रहीं मशहूर ब्रिटिश अभिनेत्री जेड गुडी

लंदन। कैंसर से पीड़ित ब्रिटिश टेलीविजन अदाकारा जेड गुडी का निधन हो गया है। कैंसर से पीड़ित ब्रिटिश टेलीविजन अदाकारा जेड गुडी अपने जीवन का आखिरी 'मदर्स डे' देखने के लिए संघर्षरत थी। रविवार को दुनिया भर में 'मदर्स डे' मनाया जानेवाला था और गुडी आखिरी बार माताओं को समर्पित इस दिवस पर अपने बच्चों से शुभकामनाएं ग्रहण करने वाली थीं। गुडी को उम्मीद थी कि अंतिम सांस गिन रहे होने के बावजूद वह अपने बच्चों-पांच साल के बॉबी और चार साल के फ्रेडी से मिल सकेंगी। गुडी के एक मित्र ने बताया कि कोई नहीं चाहता कि गुडी इस हालत में अपने बच्चों से मिलें। वह पूरे हफ्ते बेहोश रहीं हैं और ऐसे में उन्हें आशा है कि उनके बच्चे 'मदर्स डे' के अवसर पर उनसे मिल सकेंगे। इस बीच, गुडी के लिए एक बुरी खबर यह है कि उन्हें एसेक्स के बुकहर्स्ट में स्थित गिरजाघर के जिस कब्रगाह में दफनाया जाना था, उसे जगह की कमी के कारण फिलहाल बंद कर दिया गया है। इस लिहाज से घर के नजदीक स्थित फूलों की खूशबू से भरपूर कब्रिस्तान में दफन होने की गुडी की इच्छा पूरी होती नहीं दिख रही। गुडी के इस पसंदीदा कब्रिस्तान में जगह की क

हिन्दी का महाकुम्भ आज से गुजरात मे

आज से हिन्दी साहित्य सम्मलेन प्रयाग का अधिवेशन शुरू हो रह है। अधिक जानकारी के लिये दिये गये लिंक पर जानकारी प्राप्त की जा सकती है ।

मुक्तक संजीव 'सलिल'

*************************'सलिल' में प्रतिबिम्ब देखे, निष्पलक होकर मगन. खन-खन, छम-छम तेरी आहट, हर पल चुप रह सुनता हूँ। आँख मूँदकर, अनजाने ही तेरे सपने बुनता हूँ। छिपी कहाँ है मंजिल मेरी, आकर झलक दिखा दे तू- 'सलिल' नशेमन तेरा, तेरी खातिर तिनके चुनता हूँ। ************************* बादलों की ओट में महताब लगता इस तरह छिपी हो घूँघट में ज्यों संकुचाई शर्मीली दुल्हन। पवन सैयां आ उठाये हौले-हौले आवरण- 'सलिल' में प्रतिबिम्ब देखे, निष्पलक होकर मगन। *************************

जीवन क्या है...चलता -फिरता एक खिलौना है !!

जीवन क्या है...चलता-फिरता एक खिलौना है!! "चीजें अपनी गति से चलती ही रहती है ...कोई आता है ...कोई जाता है ....कोई हैरान है ...कोई परेशां है.....कोई प्रतीक्षारत है...कोई भिक्षारत है...कोई कर्मरत है....कोई युद्दरत....कोई क्या कर रहा है ...कोई क्या....जिन्दगी चलती रही है ...जिन्दगी चलती ही रहेगी....कोई आयेगा...कोई जाएगा....!!!!""............जिन्दगी के मायने क्या हैं ....जिन्दगी की चाहत क्या है ....?? ""ये जिन्दगी....ये जिन्दगी.....ये जिन्दगी आज जो तुम्हारी ...बदन की छोटी- बड़ी नसों में मचल रही है...तुम्हारे पैरों से चल रही है .....ये जिन्दगी .....ये जिन्दगी ...तुम्हारी आवाज में गले से निकल रही है ....तुम्हारे लफ्जों में ढल रही है.....ये जिन्दगी....ये जिन्दगी...बदलते जिस्मों...बदलती शक्लों में चलता-फिरता ये इक शरारा ......जो इस घड़ी नाम है तुम्हारा ......इसी से सारी चहल-पहल है...इसी से रोशन है हर नज़ारा...... सितारे तोड़ो ...या सर झुकाओ...कलम उठाओ या .......तुम्हारी आंखों की रौशनी तक है खेल सारा...ये खेल होगा नहीं दुबारा ये खेल होगा नहीं दुबारा ......ये ख