उक्त विषय पर चल रहे विमर्श में दो एक बातें और जोड़ना चाहूंगा । इन बिंदुओं को भाई सलीम ने अपने विद्वतापूर्ण आलेखों में बार - बार छुआ है अतः इस बारे में भ्रम निवारण हो जाये तो बेहतर ही होगा ! भाई सलीम का मानना है कि ईश्वर ने मनुष्यों को जिस प्रकार के दांत दिये हैं वह मांसाहार के लिये उपयुक्त हैं ! यदि मांसाहार मनुष्य के लिये जायज़ न होता तो मनुष्यों को नुकीले दांत क्यों दिये जाते। सलीम के इस तर्क को पढ़ने के बाद मैने अपने और अपने निकट मौजूद सभी लोगों के दांत चेक किये। मुझे एक भी व्यक्ति का जबाड़ा कुत्ते , बिल्ली या शेर जैसा नहीं मिला । जो दो - तीन दांत कुछ नुकीले पाये वह तो रोटी काटने के लिये भी जरूरी हैं। यदि मनुष्य के दांतों में उतना नुकीलापन भी न रहे फिर तो वह सिर्फ दाल पियेगा या हलुआ खायेगा , रोटी चबानी तो उसके बस की बात रहेगी नहीं। यदि यह चेक करना हो कि हमारे दांत मांस खाने के लिये बने हैं या नहीं तो हमें बेल्ट , पर्स या जूते चबा कर देखने चाहियें । कम से कम मेरे या मेरे मित्रों , पड़ोसियों के , सहकर्मियों के दांत तो इतने नुकीले नहीं हैं कि चमड़ा चीर - फ