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Showing posts from March 21, 2010

गीतिका: बिना नाव पतवार हुए हैं... ---आचार्य संजीव 'सलिल'

बिना नाव पतवार हुए हैं. क्यों गुलाब के खार हुए हैं. दर्शन बिन बेज़ार बहुत थे. कर दर्शन बेज़ार हुए हैं. तेवर बिन लिख रहे तेवरी. जल बिन भाटा-ज्वार हुए हैं. माली लूट रहे बगिया को- जनप्रतिनिधि बटमार हुए हैं. कल तक थे मनुहार मृदुल जो, बिना बात तकरार हुए हैं. सहकर चोट, मौन मुस्काते, हम सितार के तार हुए हैं. महानगर की हवा विषैली. विघटित घर-परिवार हुए हैं. सुधर न पाई है पगडण्डी, अनगिन मगर सुधार हुए हैं. समय-शिला पर कोशिश बादल, 'सलिल' अमिय की धार हुए हैं. * * * * *

Nationalism in Decline

The word nationalism evokes different emotions in different people. Some proudly proclaim them to be nationalists, some curse the very idea blaming it for the mayhem of first and Second World War while a large majority is completely indifferent to the idea. There is a sudden surge of nationalist feeling during a cricket match or when we face an external threat as was seen during Kargil war and much recently during 26/11 attack. But as soon as the match is over or the threat is neutralized this feeling also retreats. But is nationalism a switch that can be switched off and on at will? Can this surge of nationalist feeling be called nationalism? What is nationalism? According to me nationalism is a desire to be useful for the country. It is the willingness to sacrifice everything for the sake of your nation. It is selfless state where your nation becomes more important than your religion, your caste, your region, your family and even your life. It was due to this selfless nationalist fee

अदना पाकिस्तान और विशाल भारत

पाकिस्तान की भारत नीति केवल एक आधारभूत सिद्धांत पर आधारित है और वह यह कि पाकिस्तान हमेशा सही है। इसका स्वाभाविक रूप से यही मतलब निकलता है कि भारत हमेशा गलत है और वह अपने बड़े आकार के कारण बच निकलता है। जबकि सचाई तो ये है कि आकार और ताकत का आपसी रिश्ता बेमतलब है। ब्रिटेन भारतीय उपमहाद्वीप की किसी भी मंझोले आकार की रियासत से छोटा था, लेकिन उसने आधी दुनिया पर हुकूमत की। गिले-शिकवों का अहाता बड़ा होता है और उसमें बेतुकी बातों को भी जगह मिल जाती है। आगे पढ़ें पाकिस्तानी तर्क के अनुसार सीमापार का आतंकवाद भी भारत का दोष है, क्योंकि उसकी जड़ में भारत में कश्मीरी मुस्लिमों के साथ किया गया अन्याय है। ऐसे में इतिहास एक शोकगाथा बन जाता है और यदि तथ्य इससे मेल नहीं खाते तो उन्हें बदल भी दिया जाता है। तब इस तथ्य पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है कि यह पाकिस्तान ही था, जिसने विभाजन के छह महीनों बाद कश्मीर के मुद्दे पर लड़ाई शुरू की। जबकि सचाई तो यह है कि यदि 1947 में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित कोई भी हस्तक्षेप नहीं होता तो 1948 तक बातचीत के जरिए कश्मीर का मसला संभवत: थोड़े विभाजन के साथ सुलझा

लो क सं घ र्ष !: भगत सिंह के वैचारिक शत्रु

शहीद भगत सिंह ब्रिटिश साम्राज्यवाद को इस देश से नेस्तनाबूत कर देना चाहते थे । ब्रिटिश साम्राज्यवादियो ने अपने मुख्य शत्रु को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी । ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दुनिया में पतन के बाद उसकी जगह अमेरिकन साम्राज्यवाद ने ले ली । आज देश में अमेरिकन साम्राज्यवाद के पिट्ठू जाति , भाषा , धर्म के विवाद को खड़ा कर देश की एकता और अखंडता को कमजोर करना चाहते हैं । वास्तव में यही भगत सिंह की विचारधारा के असली शत्रु हैं । इन शत्रुओं का और अमेरिकन साम्राज्यवाद के पिट्ठुओं का हर जगह विरोध करना आवश्यक है । प्रस्तुत लेख शहीद भगत सिंह के शहादत दिवस से पूर्व प्रकाशित किया जा रहा है । - लोकसंघर्ष भगत सिंह की याद में उनकी शहादत के 75 वर्ष पूरे होने पर ब्रिटिश सरकार ने 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फाँसी दी तो वे केवल तेईस साल के थे। लेकिन आज तक वे हिन्दुस् ‍ तान के नौजवानों के आदर्श बने हुए हैं। इस छोटी सी उम्र में उन्होंने जितना काम किया औ