बिना नाव पतवार हुए हैं. क्यों गुलाब के खार हुए हैं. दर्शन बिन बेज़ार बहुत थे. कर दर्शन बेज़ार हुए हैं. तेवर बिन लिख रहे तेवरी. जल बिन भाटा-ज्वार हुए हैं. माली लूट रहे बगिया को- जनप्रतिनिधि बटमार हुए हैं. कल तक थे मनुहार मृदुल जो, बिना बात तकरार हुए हैं. सहकर चोट, मौन मुस्काते, हम सितार के तार हुए हैं. महानगर की हवा विषैली. विघटित घर-परिवार हुए हैं. सुधर न पाई है पगडण्डी, अनगिन मगर सुधार हुए हैं. समय-शिला पर कोशिश बादल, 'सलिल' अमिय की धार हुए हैं. * * * * *