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Showing posts from January 6, 2011

मनन...डा श्याम गुप्त...

       मनन “यदा वै मनुत, अथ विजानाति । नामत्वा विजानाति । मत्वैव विजानाति । मतिस त्येव विजिज्ञासित व्येति । मतिं भगवो   विजिज्ञासे इति ॥” –छांदोग्य उपनिषद ।   व्यक्ति जब मनन करता है तभी( किसी वस्तु का ) ज्ञा न होता है। मनन किये बिना नहीं जान सकता। अतः मनन को जानने की इच्छा करें कि भगवन ! मैं मनन को जानना चाहता हूं। किसी वस्तु की वास्तविकता व गहराई जानने हेतु उसमें डुबकी लगाना आवश्यक होता है। मनन क्या है , यह भी ठीक प्रकार से जानना चाहिये ।