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Showing posts from April 10, 2010

लो क सं घ र्ष !: हैं कवाकिब कुछ नज़र आते हैं कुछ, देते हैं धोखा ये बाज़ीगर खुला

हैं कवाकिब कुछ नज़र आते हैं कुछ, देते हैं धोखा ये बाज़ीगर खुला। दिनांक 8.4.2010 को महाराष्ट्र विधान सभा में जो कुछ हुआ किसी से छिपा नहीं है। राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के विधायक जितेन्द्र अव्हाड़ ने सदन को बताया कि अभिनव भारत और सनातन प्रभात जैसे अतिवादी संगठन ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध के वर्तमान सर्वसंघ चालक श्री मोहन भागवत की हत्या कारित करने का कार्यक्रम बना लिया था। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तानी खूफिया एजेन्सी आई0एस0आई0 की मदद से हिन्दुत्ववादी संगठन देश में अराजकता फैलाने के लिए प्रयासरत हैं और उन्होंने ही अजमेर की दरगाह में और समझौता एक्सप्रेस में बम धमाके किये थे। ए0टी0एस0 महाराष्ट्र के स्तम्भ रहे स्वर्गीय हेमन्त करकरे ने भी श्री मोहन भागवत को इस तथ्य की जानकारी देते हुए उन्हें आगाह किया था, कारण कि वह संगठन मानते हैं कि श्री मोहन भागवत जैसे लोग हिन्दुत्व के रास्ते से भटक गये हैं। यदि श्री मोहन भागवत की हत्या कर दी गई होती तो उसके नतीजे में आज यह देश जल रहा होता और आग बुझाने के सारे प्रयास निरर्थक सिद्ध होते। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जो अपने को हिन्दुत्व

लीला किये महेश...

जब मौत बनी दासी हमारी॥ हम उसके हुए अधीन॥ धमा चौकड़ी भूल गए सब॥ न बहकी विपरीत॥ ठाठ बात सब बना रहे॥ मिट गा आज क्लेश॥ नभ से पुष्प बरषा हुयी॥ लीला किये महेश॥

ॐ जय महगाई माता॥

ॐ जय महगाई माता॥ ॐ जय महगाई माता॥ बीस रुपिया के. जी आटा बिक जाता... ॐ जय महगाई माता॥ तुम गरीबो को भूखे पेट सुलाती॥ उनकी दशा देख तू मनही मन मुस्काती॥ तुम बेईमानो की अम्मा उन्ही की भाग्य विधाता॥ ॐ जय महगाई माता॥ तुम आंसू देने वाली हम हंस के पी जाते॥ धुप छआव में चल कर जीवन जी जाते ॥ बच्चे भूखे रोते तुम्हे दया नहीं आटा॥ ॐ जय महगाई माता॥ सुविधा से रहे वंचित घुट घुट कर जिए॥ दूध की जगह पानी नदिया वाला पिए॥ तेरी गति की पहिया शायद अब रूक जाता॥ ॐ जय महगाई माता॥

नवगीत: करो बुवाई... --संजीव 'सलिल'

नवगीत: करो बुवाई... खेत गोड़कर करो बुवाई... * ऊसर-बंजर जमीन कड़ी है. मँहगाई जी-जाल बड़ी है. सच मुश्किल की आई घड़ी है. नहीं पीर की कोई जडी है. अब कोशिश की हो पहुनाई. खेत गोड़कर करो बुवाई... * उगा खरपतवार कंटीला. महका महुआ मदिर नशीला. हुआ भोथरा कोशिश-कीला. श्रम से कर धरती को गीला. मिलकर गले हँसो सब भाई. खेत गोड़कर करो बुवाई... * मत अपनी धरती को भूलो. जड़ें जमीन हों तो नभ छूलो. स्नेह-'सलिल' ले-देकर फूलो. पेंगें भर-भर झूला झूलो. घर-घर चैती पड़े सुनाई. खेत गोड़कर करो बुवाई... * Acharya Sanjiv Salil http://divyanarmada.blogspot.com