कौआ , सर्वस्थ और बहुतायत में पाया जाने वाला पक्षी इन दिनों दुर्लभ हो चला है शहरों में कांव कांव की ध्वनी से जहा तहा आकर्षित करने वाला कौआ अब शहरों में ढूंढे नहीं मिलता यही वजह है की पितृ पक्ष में श्राद्ध की पुरातन परम्परा को पूरा करने के लिये कौओं को रोटी खिलाने वालों को इन दिनों काफी निराशा का सामना करना पड रहा है यह मामला कही और का नहीं छत्तीसगढ. का है छग पत्थलगांव के हवाले से वार्ता की इस खबर पर नजर पड़ते ही मै चकित रह गया .पर ये सच है औद्योगिकीकरण और अन्य कारणों के चलते तेजी से बढ रहे पर्यावरण प्रदूषण के चलते शहरी क्षेत्रों में इन दिनों कौए दुर्लभ पक्षी बन गया हैं पक्षी विशेषज्ञ और धरमजयगढ वन मण्डल अधिकारी हेमन्त पाण्डेय का कहना है कि कौए वातावरण के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं1 पानी और भोजन में कीटनाशक और रासायनिक दवाओं के जरूरत से ज्यादा प्रयोग होने से कौऐ तथा अन्य पक्षी आबादी से काफी दूर जा रहे हैं श्री पाण्डेय ने बताया कि पर्यावरण प्रदूषण से मनुष्य के साथ.साथ पक्षियों पर भी विपरीत असर पड रहा