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Showing posts from September 5, 2009

"पितृ पक्ष श्राद्ध " में कौओं का अकाल

कौआ , सर्वस्थ और बहुतायत में पाया जाने वाला पक्षी इन दिनों दुर्लभ हो चला है शहरों में कांव कांव की ध्वनी से जहा तहा आकर्षित करने वाला कौआ अब शहरों में ढूंढे नहीं मिलता यही वजह है की पितृ पक्ष में श्राद्ध की पुरातन परम्परा को पूरा करने के लिये कौओं को रोटी खिलाने वालों को इन दिनों काफी निराशा का सामना करना पड रहा है यह मामला कही और का नहीं छत्तीसगढ. का है छग पत्थलगांव के हवाले से वार्ता की इस खबर पर नजर पड़ते ही मै चकित रह गया .पर ये सच है औद्योगिकीकरण और अन्य कारणों के चलते तेजी से बढ रहे पर्यावरण प्रदूषण के चलते शहरी क्षेत्रों में इन दिनों कौए दुर्लभ पक्षी बन गया हैं पक्षी विशेषज्ञ और धरमजयगढ वन मण्डल अधिकारी हेमन्त पाण्डेय का कहना है कि कौए वातावरण के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं1 पानी और भोजन में कीटनाशक और रासायनिक दवाओं के जरूरत से ज्यादा प्रयोग होने से कौऐ तथा अन्य पक्षी आबादी से काफी दूर जा रहे हैं श्री पाण्डेय ने बताया कि पर्यावरण प्रदूषण से मनुष्य के साथ.साथ पक्षियों पर भी विपरीत असर पड रहा

लो क सं घ र्ष !: मणि यानी कमांडोज की गोली का टारगेट

मणि यानी रत्न होता है। मणिपुर का मतलब रत्नों का नगर है। पर लगता है इन शब्दों का यह अर्थ डिक्शनरी में ही होता है। मणिपुर के वाशिंदो के लिए मणि का अर्थ बहुत अलग है। या कह सकते हैं कई शब्द! जैसे हत्या, बलात्कार, जेल, भूख और किसी भी तरह के दमन को सहने वाला, यानी मणि है, और इन्हीं मणियों से मिलकर बनता है मणिपुर। क्या ख़ूब नाज़ होगा मणिपुरियों को अपने मणि होने पर? अपने देश की सेना, अपने राज्य की पुलिस के कमांडोज की बंदूक से छूटी गोली जब उनके पेट, सीने और कनपटी में उतरती होगी, तब वे मरने में कितना सुकून महसूस करते होंगे? यह मणिपुर का ही कोई बंदा ठीक से बयाँ कर सकता है, हम शेष भारतीय तो दूर बैठे महसूस ही कर सकते हैं। आज मणिपुर में मणि कमांडोज की गोली का टारगेट है। वाह..... रत्न की क्या इज्ज़त है! मणिपुर में राज्य और केन्द्र सरकार के खूंखार सैनिक और कमांडोज शांति का प्रयास कर रहें हैं। एक पुलिस अधिकारीे की इस बात से समझ में आता है कि वे किस तरह के प्रयास कर रहे हैं। पुलिस अधिकारी कहता है-‘या तो हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहें या फिर कुछ करने का फै़सला करें। सच्चाई ये है कि पिछले दो साल में

अब भाजपा का अन्तिम संस्कार हो ही जाना चाहिए

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही भाजपा में घमासान मचा हुआ है। जसवंत सिंह की किताब आने के बाद तो भाजपा की जंग कौरव और पांडव सरीखी लड़ाई में तब्दील हो गयी है। लेकिन यहां कौरव और पांडव की शिनाख्त करना मुश्किल है। सब के सब दुर्योधन नजर आ रहे हैं। युधिठिर का कहीं अता-पता नहीं है। ऐसा लग रहा है मानो भगवान राम को बेचने वाली भाजपा में रावण की आत्मा प्रवेश कर गयी है। उसके दस चेहरे हो गए हैं। यही पता नहीं चल पा रहा है कि कौनसा चेहरा क्या और क्यों कह रहा है। एक दूसरे पर इतनी कीचड़ उछाली जा रही है कि 'कमल' भी कीचड़ से बदसूरत हो गया है। भाजपा की चाल बदल गयी है। चरित्र तो उसका कभी था ही नहीं। चेहरा कई चेहरों में बदल गया है। बात यहां तक पहुंच चुकी है कि घमासान रोकने के लिए भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस को आगे आना पड़ा है। हालांकि संध यह कहता रहा है कि भाजपा के आंतरिक मसलों से संघ को कुछ लेना-देना नहीं है। सवाल किया जा सकता है कि जब कुछ लेना-देना नहीं है तो संघ प्रमुख मोहन भागवत क्यों भाजपा नेताओं से मुलाकातें करते घूम रहे हैं ? भाजपा में मची घमासान ने 1977 की जनता पार्टी की याद

गुरू की महिमा ,,शिक्षक दिवस..

गुरू की कृपा महान है॥ जो ज्ञान का पाठ पढाता है॥ अज्ञान- रुपी अन्धकार को॥ जीवन से मेरे हटाता है॥ जला देता है ज्ञान की ज्योति॥ पंक्ति सरल हो जाती है॥ उस गुरुवार की कृपा से॥ ज्ञान की ले मिल जाती है॥ बार बार प्रणाम करू उस गुरुवार को आज॥ विधा रुपी ग्रथ का जो दिया बड़ा उपहार॥

गुरु गोबिंद दोउ खड़े काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपनो जिन गोबिंद दियो बताय।।

शिक्षक दिवस का आरम्भ तब हुआ था जब एक बार राधाकृष्णन के कुछ मित्रों और शिष्यों ने उनसे उनका जन्मदिन मानाने के लिए आग्रह किया तब उन्होंने कहा की उनका जन्मदिन मानाने के बजाय अच्छा होगा कि इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए। तब से उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है । राधाकृष्णन का जन्म पांच सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूतानी के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। प्रारंभिक स्कूली शिक्षा के बाद मद्रास के क्रिश्चियन कालेज में उन्होंने दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की। मद्रास के प्रेसिडेंसी कालेज में अध्यापन के शुरूआती दिनों मे ही उन्होंने एक महान शिक्षाविद् की ख्याति प्राप्त कर ली थी। मात्र 30 वर्ष की उम्र मे उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्राध्यापक पद की पेशकश की गइ थी। राधाकृष्णन 1931 से 1936 तक आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। वर्ष 1939 में वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति बने। वह आक्सफोर्ड में पूर्वी धर्म एवं नीतिशास्त्र की स्प्लैंडिंग प्रोफेसर की पीठ पर 16 वर्ष तक रहे। भारत सरकार ने उनकी सेवाओं को देखते हुए 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया