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Showing posts from March 21, 2009

टेलिविज़न इतिहास में पहली बार ! देखना ना भूलें !!

टेलिविज़न इतिहास में पहली बार रविवार, दिनांक 22/03/2009 को शाम 8:30 बजे  से शुरू होगा  महासंग्राम                    श्री  श्री रवि शंकर जी और डॉ. ज़ाकिर नायक के बीच पर देखना ना भूलें !!! रविवार, दिनांक 22/03/2009 को शाम 8:30 बजे  से गुजारिशकर्ता: सलीम खान स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़ लखनऊ व पीलीभीत, उत्तर प्रदेश

भारतीय राजनीति का यक्ष प्रश्न ........... जवाब है क्या आपके पास ????

राहुल गाँधी की युवा ब्रिगेड( भलेही राजनीती में उनका प्रवेश अनुकम्पा के आधार पर हुआ हो ) से मुकाबला करने वाले कौन हैं ? यह भाजपा से लेकर तमाम दलों के लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ है ।लेकिन इस सवाल का जबाब ढूंढने के बजायसभी इधर -उधर की बेकार दलील देकर ताल -मटोल करते नज़र आते हैं । इसी सवाल पर बहस के दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक छात्र नेता ने तर्क देते हुए युवा की जगह अनुभव को तरजीह देने की बात कही । कुछ अन्य युवा नेताओं ने उनकी बात का विरोध किया तो वो मुद्दे से भटक कर विचारधारा और हिंदुत्वा को परिभाषित करने लगे । अपनी आधी -अधूरी जानकारी और थोड़े बहुत महापुरुषों के कथन को तोड़- मरोड़ कर लगे भाषण देने । अभी टीवी में राजनाथ जी की भूलने की गाथा देख रहा था जिसमे वो यूपीए की जगह एनडीए , एनडीए की जगह यूपीए का नाम ले रहे थे । क्या यह घटना इनके खोखले युवापन के दावे को नही झुठलाती ?क्या भाजपा को युवाओं को आगे लाने की बात पर गंभीरता से सोच कर अमल करने की आवश्यकता नही है? क्या नरेन्द्र मोदी को अपनी महत्वाकांक्षा की आड़ में रोक कर युवा ब्रिगेड को पाँच साल पीछे नही कर दिया गया ?संगठन में तो वैसे भी ४० पार
गीत चलो हम सूरज उगायें आचार्य संजीव 'सलिल' सघन तम से क्यों डरें हम? भीत होकर क्यों मरें हम? मरुस्थल भी जी उठेंगे- हरीतिमा मिल हम उगायें... विमल जल की सुनें कल-कल। भुला दें स्वार्थों की किल-किल। सत्य-शिव-सुन्दर रचें हम- सभी सब के काम आयें... लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?, किसी के मन भाएंगे क्या? सोच यह जीवन जियें हम। हाथ-हाथों से मिलाएं... आत्म में विश्वातं देखें। हर जगह परमात्म लेखें। छिपा है कंकर में शंकर। देख हम मस्तक नवायें... तिमिर में दीपक बनेंगे। शून्य में भी सुर सुनेंगे। नाद अनहद गूंजता जो सुन 'सलिल' सबको सुनायें... ****************************

गुजरात दंगों के दर्द पर बोलती फिल्म: फिराक

गुजरात दंगों की पृष्ठभूमि पर इससे पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं , लेकिन एक्टेस से डायरेक्टर बनीं नंदिता दास की फिल्म फिराक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि पूरी फिल्म में न तो दंगाइयों को दिखाया गया है और न ही दंगा। यह केवल दंगे के पीडितों का दर्द दर्शाती है |  देश - विदेश के कई प्रतिष्ठित अवॉर्ड समारोहों में इस फिल्म को दर्शकों ने सराहा। साथ ही इसे सात इंटरनैशनल अवॉर्ड्स भी मिले। गुजरात दंगों पर बनीं पिछली चंद फिल्मों का जिक्र किया जाए तो ज्यादातर की कहानी दंगों से पहले या फिर उसके आसपास की है। पर नंदिता की यह फिल्म दंगों के खत्म होने के एक महीने बाद शुरू होती है। दिखाया गया है कि दंगों में अपनों को खो चुके कुछ परिवार नए सिरे से जिंदगी शुरू करने में लगे हैं।   समीर शेख ( संजय सूरी ) के शोरूम को दंगाइयों ने लूट लिया था। अब वह किसी दूसरी जगह जाकर बिजनेस करने की सोच रहा है , जबकि उसकी गुजराती बीवी अनुराधा देसाई ( टिस्का चोपड़ा ) का मानना है कि समीर को यहीं रहकर हालातों का मुकाबला करना चाहिए। वहीं , संगीत की साधना में लगे नवाब साहब ( नसीरूद्दीन शाह ) को अफसोस है कि इन दंगों में धर्म विशेष क
गीत चलो हम सूरज उगायें आचार्य संजीव 'सलिल' चलो! हम सूरज उगाएं सघन तम से क्यों डरें हम? भीत होकर क्यों मरें हम? मरुस्थल भी जी उठेंगे- हरीतिमा मिल हम उगायें... विमल जल की सुनें कल-कल। भुला दें स्वार्थों की किल-किल। सत्य-शिव -सुंदर रचें हम। सभी सब के काम आयें... लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?, किसी के मन भाएंगे क्या? सोच यह जीवन जियें हम। हाथ-हाथों से मिलाएं... आत्म में विश्वातं देखें। हर जगह परमात्म लेखें। छिपा है कंकर में शंकर। देख हम मस्तक नवायें... तिमिर में दीपक बनेंगे। शून्य में भी सुनेंगे। नाद अनहद गूंजता जो सुन 'सलिल' सबको सुनायें... **************************

क्या मैं आपको राजनीति में आने की सलाह दे रहा हूँ ?

लोकसभा चुनाव फ़िर आ गया । क्या सोच रहे हैं आप ? ? पहले मैं भी वही सोचता था जो आप सोच रहे हैं ! अरे कब तक सिर्फ़ सोचते रहेंगे ? आप मानिये या न मानिये राजनीति से हर एक नागरिक प्रभावित होता है । अम्बानी से लेकर भिखारी तक का जीवन इसी गन्दी राजनीति से चलता है । समझ गए आप ! तो क्या मैं आपको राजनीति में आने की सलाह दे रहा हूँ ? नही ! नही ! आप जहाँ हैं, जैसे है , वही से अपनी भागीदारी बढाइये । सब से पहले राजनीति को गरियाना बंद कीजिये । सही प्रतिनिधि को चुनिए । इसके लिए आप सबों को वोट करना पड़ेगा जिसके लिए धुप में घंटो खड़े होना भी पड़ सकता है । क्या आप ये कष्ट उठाने के लिए तैयार हैं ? क्या कहा ? हाँ ! चलो भाई अब आप पक्के भारतीय बन गए । अब क्या है ? अगर इससे भी संतुष्टि न मिले तो जंग में शामिल हो जाइये । दांव पर सपनों को लगा कर चल पड़ा हूँ मंजिल तक पहुँचने में कारवां बन ही जाएगा ।

तो क्या करें?

विनय बिहारी सिंह रह जाएगी यहीं हमारी देह जिसकी इतनी करते हैं हम फिकर तब जाएगा क्या कुछ हमारे साथ? जाएंगे हमारे कर्म और संस्कार तो क्या करें हम? जीना छोड़ दें यह सोच कर कि एक दिन है मरना? नहीं, जो मन में आए वह न कर ठहर कर सोचें- क्या सही है और क्या गलत।।

एक गरीब ब्लागर की आत्मकथा

संजय सेन सागर जी को बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ और खुद पर गर्व महसूस करता हूँ कि मुझे इस जिंदादिल इंसान का साथ मिला। मैने अपने दो साल इनके साथ बिताये और इन दो सालों में मैने अपनी जिदगीं में सबसे ज्यादा सीखा , संजय सेन सागर मुझ से उम्र में छोटे है ंऔर मुझे उनको अपना गुरू मानते हुए जरा भी शर्म या असुविधा महसूस नही होती। वह एक ऐसे व्यक्ति है जिनके लिए कुछ भी नामुमकिन नही है । मैने जो देखा और समझा उसी के आधार पर मैं आपको संजय सेन सागर जी के बारे में बताना चाहूंगा।क्योंकि मुझे लगता है कि इनके बारे में जानकर लोगो का आगे बढने की प्रेरणा मिल सकती है। जन्म और माता पिता संजय सेन सागर जी का जन्म मध्यप्रदेश के सागर जिले में हुआ है इनके पिता एक सेलून चलाते है , जो घर के निर्वाह के लिए एकमात्र साधन है । संजय जी की आयू अभी 20 साल है। लेकिन आपको बताना चाहूँगा कि यह हौसलों और सपनों से काफी अमीर इंसान है और मै अपने अनुभव के आधार प

हिन्दुओं पर मुस्लिमों ने १००० साल राज किया था?

यह महाशय कह रहे है की मुस्लिम ने हिन्दुओं पर १००० साल तक राज किया,जरा आपकी उस कुरान मे एक बार फिर देखिये हकीकत यह नहीं है!और अगर ऐसा होता भी तो भी मैं नहीं मानता,अरे भाई मेरी मर्ज़ी और मैं तो यही हूँ आप को छोड़कर कहा जा सकता हूँ,क्योंकि मुझसे पहेले तो आपको जाना पड़ेगा जय श्रीराम ...... आगे पढ़ें के आगे यहाँ
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