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Showing posts from August 16, 2009

मुक्तक आचार्य संजीव 'सलिल'

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ मुक्तक आचार्य संजीव 'सलिल' राष्ट्र जमीं का महज न टुकडा, यह आस्था-विश्वास हमारा. तीर्थ, धर्म, मंदिर, मस्जिद, मठ, गिरजा, देवालय, गुरुद्वारा. भाषा-भूषा-भेष भिन्न हैं, लेकिन ह्रदय भिन्न मत मानो- कोटि-कोटि हम मात्र एक हैं, 'जय भारत माँ' सबका नारा. ********* सत्ता और सियासत केवल साधन, साध्य न इनको मानो. जनहित-राष्ट्रोत्थान एक ही लक्ष्य अटल अपना पहचानो. . संसद और विधानसभा में वाग्वीर जो पहुँच गए हैं- ठुकरा उनको, जन-सेवक चुन, जनगण की जय निश्चय जानो.. ********** देव, खुदा, रब, गौड, ईश्वर, गुरु, ऋषि भारत की संतान. भारत जग में सबसे ज्यादा पावन, सबसे अधिक महान. मंत्र, ऋचाएँ, श्लोक, आरती, आयत, प्रेयर औ' अरदास. वन्दन-अर्चन करें राष्ट्र का, 'सलिल' सतत का र्गौरव गान. ********* संसद मंदिर लोकतंत्र का, हुल्लड़ जनगण का उपहास. चला गोलियां मानव-द्रोही फैलाते नृशंस संत्रास. मूक रहे गर इन्हें न रोका, तो अपराधी हम होंगे- 'सलिल' सत्य यह, क्षमा न हमको देगा किंचित भी इतिहास. *********** 'बाजी लगा जान की, रोको आतंकी-हत्यारों को. असफल हुआ स

लो क सं घ र्ष !: जगती की अंगनाई में...

जगती की अंगनाई में, क्यों धूप बिखर जाती है। तारों की चूनर ओढे, क्यों निशा संवर जाती है ? अभिशाप यहाँ पर क्या है, वरदान कहूं मैं किसको। दूजे का दुःख अपना ले, है समय यहाँ पर किसको॥ रसधार यहाँ पर क्या है ? विषधर कहेंगे किसको ? क्षण -क्षण परिवर्तित होता, संसार कहेंगे किसको ? डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"