Skip to main content

Posts

Showing posts from April 13, 2010

माओवाद-मार्क्सवाद की अत्रप्त शवसाधना

आशुतोष 1990 में आधिकारिक तौर पर मार्क्सवाद की मौत हो गयी लेकिन उसके शव को लेकर अभी भी कुछ लोग घूम रहे हैं। लेनिन के रूस ने इस शव को दफन कर दिया है और माओ का चीन इस शव को भूल चुका है लेकिन इस देश में कुछ सिरफिरों को अभी भी लगता है कि मार्क्स की तंत्र साधना कर के इस शव में जान फूंकी जा सकती है। इसलिये किशन जी 2011 में कोलकाता में सशस्त्र क्रांति का सपना संजो रहे हैं। और पिछले दिनों दंतेवाड़ा के जंगलों में 76 जवानों का कत्ल कर के ये सोचने भी लगे हैं कि अब क्रांति दूर नहीं है और बहुत जल्द ही दिल्ली पर भी उनका कब्जा हो जायेगा। इन सिरफिरों के कुछ सिरफिरे दोस्त भी इसी यकीन पर कब्जा जमाये बैठे हैं और पत्रिकाओं और टीवी चैनलों में जोर दे दे कर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को बलात्कारी और कातिलों की जमात ठहराने के लिये अंग्रेजी और हिंदी के शब्दों का खूबसूरत इस्तेमाल भी करने लगे हैं। लेकिन ये भूल जाते हैं कि दिल्ली के आराम पंसद माहौल में रहकर नक्सलियों की वकालत करना आसान है लेकिन इस सचाई से रूबरू होना मुश्किल कि अगर य़े नक्सली वाकई में अपने मकसद में कामयाब हो गये तो सबसे पहले इनकी ही जुबान पर ताला लग

लो क सं घ र्ष !: या रब, न वह समझें हैं, न समझेंगे मेरी बात

खाना , कपड़ा, मकान, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की समस्यायें ही क्या कम है, अब पानी, बिजली और एल0 पी0 जी0 का हाहाकार भी आम जनता के मन को मथे डाल रहा है, जल निगम गाँव-गाँव नलों का जाल बिछा रहा हैं मगर लगभग सभी जगह से कुछ ही दिन में यह शिकायत मिलती है कि नलों नें पानी देना बन्द कर दिया। विद्युत विभाग नें सुदूर ग्रामों, पुरवों तक खम्बे गाड़ दिये, तार दौड़ा दिये बिजली आज तक न आई। वित्तीय वर्ष खत्म होते ही ठेकेदारों के भुगतान हो जाते है, अफसरों की जेबें कमीशन से गर्म हो जाती हैं, आँकडे़ आ जाते हैं-देश-प्रदेश का विकास हो रहा है, जनता सुखी होती जा रही है। शूल-त्रिशूल की यह कहानी आगे बढ़ती है, पेट्रोलियम मंत्रालय अब ग्रामीण जनता पर (डीज़ल के मंहगा करने के बाद) गैस सिलेन्डर देने हेतु इनायत की नज़र डालने जा रहा है-दाम वही लिये जायेंगे जो शहरी उपभोक्ताओं से लिये जाते हैं-इस सुविधा का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को लकड़ी, कंडों के सुलगाने की परेशानी को दूर करना है। शहरों का हाल सभी जान रहे हैं कि गैस मिलने में इतनी दिक़क़तें आ गई है कि अनेक लोग फिर लकड़ी कोयला जलाने के लिये मजबूर हो गये।