लोग रूठ जाते हैं मुझसे , और मुझे मनाना नहीं आता ! मैं चाहती हूँ क्या ? मुझे जताना नहीं आता ! आँसुओं को पीना पुरानी आदत है , .मुझे आंसू बहाना नहीं आता ! लोग कहते हैं मेरा दिल है पत्थर का , इसलिए इसको पिघलाना नहीं आता ! अब क्या कहूँ मैं............ क्या आता है, क्या नहीं आता ! बस मुझे मौसम की तरह , बार - बार बदल जाना नहीं आता ! अब क्या करे कीससे कहें हम , हमे तो किसी भी तरह मनाना नहीं आता !