साम्राज्यवाद के घड़ियाली आँसू दोनों पक्ष एक-दूसरे पर भरोसा नहीं जता रहे थे। नतीजतन, उत्तरी कोरिया ने अपने आपको आईएईए से अलग करने का इरादा ज़ाहिर किया। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग तरह की समस्याओं के उभरने का खतरा था। तब तक बड़े बुष जा चुके थे और क्लिंटन महोदय राष्ट्रपति बन चुके थे। इराक पर किये गये पहले हमले की आलोचनाएँ थमी नहीं थीं और क्लिंटन सर्बिया में फौजी कार्रवाई करने की तैयारी में थे। उधर दक्षिण कोरिया व उत्तरी कोरिया की सीमा पर तनाव बढ़ रहा था। अमेरिकी फौजें तो दक्षिण कोरिया में 1950 से ही डेरा डाले हुए हैं। क़रीब 30 हजार अमेरिकी फौजी समुंदर, ज़मीन और आसमान में दक्षिण कोरिया की सुरक्षा के लिए हर वक्त उसी ज़मीन पर मौजूद रहते हैं। उत्तर कोरिया की परमाणु हथियार बनाने की सरगर्म ख़बरों की वजह से कोरियाई खाड़ी में युद्ध जैसे हालात बन गये थे। क्लिंटन के विषेषज्ञ सलाहकारों ने युद्ध छिड़ने की स्थिति में भीषण नरसंहार की चेतावनियाँ दी थीं। इन परिस्थितियों में उत्तरी कोरिया के साथ टकराव की स्थिति अमेरिका के लिए अनुकूल न लगती देख तत्कालीन राष्ट्रपति क्लिंटन ने शांति का कोई रास्ता निकालने के लिए पूर