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Showing posts from November 4, 2009

लो क सं घ र्ष !: संप्रभुता से समझौता नहीं - उत्तरी कोरिया - 3

साम्राज्यवाद के घड़ियाली आँसू दोनों पक्ष एक-दूसरे पर भरोसा नहीं जता रहे थे। नतीजतन, उत्तरी कोरिया ने अपने आपको आईएईए से अलग करने का इरादा ज़ाहिर किया। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग तरह की समस्याओं के उभरने का खतरा था। तब तक बड़े बुष जा चुके थे और क्लिंटन महोदय राष्ट्रपति बन चुके थे। इराक पर किये गये पहले हमले की आलोचनाएँ थमी नहीं थीं और क्लिंटन सर्बिया में फौजी कार्रवाई करने की तैयारी में थे। उधर दक्षिण कोरिया व उत्तरी कोरिया की सीमा पर तनाव बढ़ रहा था। अमेरिकी फौजें तो दक्षिण कोरिया में 1950 से ही डेरा डाले हुए हैं। क़रीब 30 हजार अमेरिकी फौजी समुंदर, ज़मीन और आसमान में दक्षिण कोरिया की सुरक्षा के लिए हर वक्त उसी ज़मीन पर मौजूद रहते हैं। उत्तर कोरिया की परमाणु हथियार बनाने की सरगर्म ख़बरों की वजह से कोरियाई खाड़ी में युद्ध जैसे हालात बन गये थे। क्लिंटन के विषेषज्ञ सलाहकारों ने युद्ध छिड़ने की स्थिति में भीषण नरसंहार की चेतावनियाँ दी थीं। इन परिस्थितियों में उत्तरी कोरिया के साथ टकराव की स्थिति अमेरिका के लिए अनुकूल न लगती देख तत्कालीन राष्ट्रपति क्लिंटन ने शांति का कोई रास्ता निकालने के लिए पूर

हर पवन वेग में छाले है॥

हर नदिया का पानी धूमिल॥ हर पवन वेग में छाले है॥ हर दिल में लालच बसती॥ अब के मनुष्य निराले है॥ मधुर वचन से दस लेते है॥ पर कट जाते है राही के॥ मैसमझ न पाया जीवन लय को॥ मन ढूढ़ रहा हम राही को॥

नाजुक कली..

पल्लू का पट मत गिरने दे॥ खिल जाये गी नाजुक कलियाँ॥ यौवन का रस गिर जाएगा॥ पड़ जायेगी हथकडिया॥ सिमट जायेगी सागर की गंगा॥ मन कुंठित हो जाएगा॥ अश्रु की बूंदे टपकेगी॥ जीवन बन जाएगा छलिया॥ । हठी ठिठोली का दिन कर लो॥ चढ़ जाओ उस प्यारे पथ पर॥ जिस पथ पर सब चढ़ नही सकते॥ सूनी हो जायेगी जीवन की गलिया॥

मैया कहती कब आओगी॥

साजन के सहारे भूल गयी॥ माँ बाप के घर का दरवाजा॥ मैया कहती कब आओगी॥ एक बार बेटी तो घर आ जा॥ फुर्सत नही मिलाती अपने घर से॥ बच्चे स्कूल को जाते है॥ सुबह के निकले ट्यूशन पढ़ के ॥ शाम को वापस आते है॥ याद आती चुपडी रोटी ॥ जब माँ कहती थी पूरी खा जा॥ मैया कहती कब आओगी॥ एक बार बेटी तो घर आ जा॥ दूर बसी हूँ आ करके ॥ जाने का मौका नही मिलता॥ काम काज में रमी हूँ रहती॥ मन भी यहाँ से नही हिलता॥ भाभी कहती कब आओगी ॥ आके उनकी बात बता जा॥

भाच्पन कय याद..

जंगल कय हमरे सुंदर छाया॥ काली माई कय अद्भुत माया॥ ऊ नदिया कय सुंदर पानी। सब यारन कय मनमानी॥ लुका-छुपी कय सुंदर खेल॥ सब साथिन कय सच्चा मेल॥ सपने मा कभो देखात नही॥ बचपन कय याद भुलात नही॥ १० साल कय उमर मामा । के हिया गुजार दीं॥ जब नाम लिखाय लीन तीसरे मा पढय म मन लगाय लीन॥ आवय जाय न क कय अक्षर तीसरे म नाम लिखा अहय॥ पढय के खातिर घर से भागी॥ खेलय म मन राम्हा रहय॥ बाबू कय हमरे गाल पे थप्पड़ मन के अन्दर मचलात नही॥ बचपन कय याद भुलात नही॥ भैस चरावय जब जायी रंजीतवा के संग जात रहे॥ अगल -बगल कय भदई ककणी नदिया तीरे खात रहे॥ कौनव घसियारिन जब मिल जाय दुइनव जन रंग जमे देई॥ खैची खुरपा बिथाराय देयी गोरून का घास कहिये देयी॥ उनके हाथे कय फुटहा कंगन मन का हमरे सोहात नही॥ बचपन कय याद भुलात नही॥ अगर केहू गुस्सा म बोले दुनव जन लठ जमाय देयी॥ अगल बगल के गावन म जम के आतंक फैलाय देयी॥ घर के लोगन मुह मोडे बाबू आवय तो जम तोडे॥ ऊ नदिया कय भंगी कय भंगा सब साथिन कय हर हर गंगा॥ हमरे मन से जात नही बचपन कय याद भुलात नही॥