Skip to main content

Posts

Showing posts from June 15, 2009

T-20: हारना ही था, आखिर मुगालते कब तक साथ देते...

कैसे गलतफहमियां और अतिआत्मविश्वास टीम इंडिया को ले डूबे, टूर्नामेंट से विदाई का बयास बनें कारणों के विश्लेषण का प्रयास... गलतफहमी नं 1 - हम सबसे बेहतर टी-20 टीम हैं। वास्ताविकता- हां हम सबसे बेहतर टी-20 टीम थे। पिछले कुछ सालों में जब हमने टी-20 वर्ल्डकप जीता था तब, उसके बाद कई टीमों ने हमें कई मौकों पर हराया था। फिर भी हम गलतफहमी का शिकार रहे। गलतफहमी नं 2 - हमें टी-20 का सर्वाधिक अनुभव है। वास्तविकता- पहले टी-20 वर्ल्डकप तक कोई भी टीम ठीकठाक तरीके से इस फार्मेट में खेलने का तरीका नहीं जानती थी। उसके बाद अन्य टीमों ने जहां अपने खेल में काफी सुधार किया वहीं हम लगातार इस मुगालते में रहे कि टी-20 में हम ही सबसे बेहतर हैं। यहां तक की हमने यह भी नहीं देखा कि उसके बाद दो आइपीएल सीजन हो चुके हैं इसमें काफी विदेशी खिलाड़ी खेले हैं। कई विदेशी कोचों ने यहां अनुभव प्राप्त किया है। इस बात तक को नजरअंदाज किया कि इन आइपीएल सीजनों में भारतीयों के समकक्ष ही विदेशी खिलाडि़यों ने जबर्दस्त प्रदर्शन किय है। गलतफहमी नं 3 - टी-20 युवाओं का खेल है। हमारी टीम का औसत आयु सबसे कम है। वास्तविकता- आइपीएल में बुजु

इश्क कमीना ही नहीं, बेशर्म और बेहया भी होता है

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी पता नहीं इश्क कमीना होता है या नहीं लेकिन अनुराधा बाली या फिजा और चन्द्रमोहन या चांद मौहम्मद का नाटक देखने के बाद लगता कि इश्क वाकई कमीना ही नहीं बेशर्म और बेहया भी होता है। सुबह-सुबह अखबार में जब इन दोनों की हंसती-मुस्कराती तस्वीर पर नजर पड़ी तो यही लगा कि शायद फिर से फिजा या चांद कोई बकवास की होगी। लेकिन खबर पढ़कर मालूम हुआ कि कुछ माफी-तलाफी का किस्सा है। फिजा ने चांद को और चांद ने फिजा को क्या-क्या नहीं कहा। मीडिया में ये दोनों उपहास का कारण बने रहे। लेकिन लगता है इन दोनों में शर्म नाम की कोई चीज नहीं है। बेशर्मी और बेहयाई की मिसाल कायम करने वाले ये दोनों मौहब्बत और इस्लाम का मजाक उड़ा रहे हैं। तलाक के साथ मेहर की रकम लौटाने का दावा करने वाले चांद अब पता नहीं किस मुंह से कह रहे हैं कि उन्होंने फिजा को तलाक नहीं दिया है। जिस फिजा ने चांद की कथित बेवफाई को लेकर आसमान सिर पर उठा लिया था, अब वह कैसे चांद को माफी देने की सोच रही है। यदि फिजा चांद को माफी देने की सोच रही है, उसे माफी देने से पहले यह सोचना चाहिए कि जो शख्स अपनी उस पत्नि का नहीं हुआ, जो अपने परिवार और समाज

जिस गांव में बच्चे खेलते हैं नागराज संग

अहमदाबाद. एक कक्षा जहां सभी ध्यानपूर्वक देख-सुन रहे हैं। कुछ ही दूर पर एक जहरीला सांप है जो ध्यान लगाने का एक बेहतर माध्यम बना हुआ है। पश्चिम भारत के सौ छह बंजारा वाड़ी जाति की छह वर्षीय रेखा बाई ने सभी अन्य बच्चों की तरह दो वर्ष की आयु में पहली बार कोबरा जैसे जहरीले सांप को अपने हाथ से पकड़कर महसूस किया था। यहां लगभग सभी बच्चे दस वर्ष की आयु पूर्ण होने तक अपनी इस सपेरा जाति की परंपरा का निर्वहन करना प्रारंभ कर देते हैं। लिंग भेद को दरकिनार करते हुए सपेरा जाति की महिलाएं अपने पति अथवा भाई आदि की अनुपस्थिति में इन सांपों की देखभाल करती हैं। साथ ही वे परंपरागत बीन बजाकर तमाशा भी दिखाती हैं। इस सपेरा जाति के प्रमुख बाबानाथ मिथुनाथ मदारी कहते हैं कि तमाशा दिखाने का यह प्रशिक्षण दो बरस की आयु में ही प्रारंभ हो जाता है। परंपरागत तरीके से दिया जाने वाला यह प्रशिक्षण तब तक जारी रहता है जब तक प्रशिक्षु स्वयं अपने बल पर तमाशा दिखाने लायक नहीं बन जाता। बारह वर्ष की आयु तक बच्चे सांप के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। इसके बाद वे हजारों सालों से व भारत में राजाओं के समय से चली आ रही