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Showing posts from July 28, 2013

doha salila : gataagat SANJIV

दोहा सलिला: गतागत सलिल * गर्व न जिनको विगत पर, जिन्हें आज पर शर्म। बदकिस्मत हैं वे सभी, ज्ञात न जीवन मर्म।। * विगत आज की प्रेरणा, बनकर करे सुधार। कर्म-कुंडली आज की, भावी का आधार।। * गत-आगत दो तीर हैं, आज सलिल की धार। भाग्य नाव खेत मनुज, थाम कर्म-पतवार।। * कौन कहे क्या 'सलिल' मत, करना इसकी फ़िक्र। श्रम-कोशिश कर अनवरत, समय करगा ज़िक्र।। * जसे मूल पर शर्म है, वह सचमुच नादान। तार नहीं सकते उसे, नर क्या खुद भगवान।। * दीप्ति भोर की ग्रहण कर, शशि बन दमका रात। फ़िक्र न कर वंदन करे, तेरा पुलक प्रभात।। * भला भले में देखते, हैं परदेशी विज्ञ। बुरा भेल में लिखते, हाय स्वदेशी अज्ञ।। * Sanjiv verma 'Salil' salil.sanjiv@gmail.com http://divyanarmada.blogspot.in