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Showing posts from September 16, 2010

दुनिया की भीड़

सुनते तो हैं की अकेले आये थे अकेले ही जाना है बात तो ये सच है पर इन सब  का एहसास संसार में आते ही ख़तम केसे हो जाता है ये समझ में नहीं आता ! पैदा होते ही माँ की गोद और फिर ये सिलसिला जेसे थमने का नाम ही नहीं लेती और ये हमारी जेसे आदत ही बनने लगती है और फिर भीड़ से जुड़ने का सिलसला शुरू हो जाता है जो सारी जिंदगी चलता ही रहता है !इतने लम्बे सफ़र में न जाने कितनो से मुलाकात होती है जिनमे कुच्छ बहुत अच्छे होते हैं जिनके विचारो से हम प्रभावित होते हैं और कुच्छ  येसे  जिनके विचार हमारे विचारो से मेल नहीं खाते फिर भी हम उनके साथ जुड़े रहते हैं कारन वही, क्युकी हमे तो भीड़ से जुड़ने की आदत जो पड़ गई है और यही कारन भी है की जब हम इनसे दूर होने की सोचने लगते हैं तो हमे अकेलेपन का एहसास सताने लगता है !और फिर से वही सिलसिला शुरू हो जाता है भीड़ में शमिल होने का और वही दुःख सुख का रेला जो खटी मीठी यादो के साथ हमे कभी हंसती है तो कभी रुलाती भी है !                                                                                                                                                    सुख