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Showing posts from February 23, 2009

क्या कहें क्या पता !!

क्या कहें क्या पता !! कैसी ये आरजू ,क्या कहें क्या पता ! तेरे इश्क में हम, हो गए लापता !! चलते-चलते मेरी, गुम हुई मंजिलें जायेंगे अब कहाँ,क्या कहें क्या पता !! तेरे गम से मेरी,आँख नम हो गयीं कितने आंसू गिरे,क्या कहें क्या पता !! सुबो से शाम तक,ख़ुद को ढोता हूँ मैं जान जानी है कब,क्या कहें क्या पता !! नज्र कर दी तुझे,जिन्दगी भी ये मेरी करना है तुझको क्या,क्या कहें क्या पता !! उफ़ मैं भी "गाफिल"हूँ हाय बड़ा बावला ढूंढता हूँ मैं किसे,क्या कहें क्या पता !!

"आस्कार" जितने का अर्थ है भारत कि गरिबी का जश्न मनाने का समय।

हमे तुम पर गर्व है, रहमान मुम्बई की झुग्गी-बस्ती के एक अनाथ युवक के करोडपती बनने की कहानी पर आधारित फिल्म "स्लमडॉग मिलेयनेयर" की सर्वश्रैष्ठ मूल सगीत रचना के लिये २ आस्कर पुरस्कार कुल (फिल्म८ केटेगिरी मे आस्कर जिता) मे जीतने वाले पहले भारतीय बनक र सगीतकार ए आर रहमान ने इतिहास रच दिया । मद्रास के मोजार्ट कहे जाने वाले रहमान ने अपनी यह उपलब्धि भारत को समर्पित कर दी। इस फिल्म मै अनिल कपुर, इरफानखॉ, और ब्रिटिश भारतिय देव पटेल प्रमुख भुमिका मे है। पुरा नाम- अल्ला रक्खा रहमान जन्म- ६ जनवरी १९६६ पिता- आर के शेखर (मलियालम फिल्मो के कम्पोजर और म्युजिक कन्डकटर। रहमान ९ साल के थे पिता कि मोत हो गई, परिवार ने म्युजिकल स्टुमेन्ट किराये पर देकर घर खर्च निकालते थे। १९८९ सूफी मत से प्रभावित होकर पुरा परिवार हिन्दु से मुस्लिम बना गया। तब तक रहमान का नाम दिलीप कुमार था। १९९२ मे मणीरत्म कि फिल्म रोजा से अपना फिल्मी जिवन शुरु किया। कामियाबी के शिखर-: १० करोड से ज्याद बिक चुके है रिकार्ड। २ करोड से ज्यादा कैसेट कि बिक्रि। टाइम्स मैगजिन ने उन्हे मोत्जार्ट ऑफ मद्रास की उप

आप लोग जिंदगी भर गवार ही रहना चाहते हो क्या?

संजय जी ने कहा -- व्योम जी जैसा की मैंने आपसे पहेले भी कहा था की यह मंच सिर्फ विचारों का है अच्छे विचारों का तो यहाँ पर इस तरह की बातें शोभा नहीं देती !और आपको लेकर मुझे एक और समस्या है की ''आप शायद ऐसा कुछ कर जाते है जिससे लोग व्योम श्रीवास्तव और संजय सेन सागर को एक ही व्यक्ति मानकर चलते है !इसमें मुझे कोई परेशानी तो नहीं है ,पर इस तरह की पोस्ट वाली मानसिकता मेरी नहीं है !सो आगे से आप धयन रखें की अश्लीलता न हो और हमेशा सबको कुछ अच्छा देने की कोशिश करो !जय हिन्दुस्तान -जय यंगिस्तान आप लोग जिंदगी भर गवार ही रहना चाहते हो क्या? मैं यह जानना चाहता हूँ की आप लोग क्या जिंदगी भर गवार ही बने रहना चाहते हो आखिर आप लोग सेक्स का नाम आते ही इतने डर क्यों जाते हो,हमारे जिंदगी का ही एक भाग तो है !अगर आपको लगता है की देश विकास कर रहा है तो यह देश के विकास मे शामिल नहीं होना चाहिए?मैं संजय जी आपकी हालत समझ सकता हूँ अभी आपकी उम्र मुझसे कम है शायद इसलिए आप इसे जायज नहीं ठहरा पा रहे हो लेकिन भविष्य मे आप मेरे साथ हो जाओगे यह तय है ! और मैंने ऐसा क्या कर दिया की लोग आपको और मुझे एक समझने लगे ,

फकीर मोहम्मद घोसी की सम्मानित कविता- ''गर भाषा न होती''

कलम का सिपाही कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत अब हम जो कविता प्रकाशित करने जा रहे है उ से अपने अल्फाजों और भावनाओं से सजाया है ''फकीर मोहम्मद घोसी जी '' ने !फकीर मो हम्मद घोसी जी विजय नगर, फालना स्टेशन, जिला-पाली (राजस्थान) से बास्ता रखते है ,उनकी रचना में देश प्रेम .भाषा प्रेम देखा गया है ! उनकी आज की रचना भी कुछ ऐसी ही है ''''गर भाषा न होती''! हम आपको याद दिला दे की शीर्ष पाँच की यह अन्तिम कविता है ,इसके बाद सम्मानित पाँच कविताओं का सफर यही थम जाएगा ! और इसके बाद हम ९ सराहनीय कविताएँ आपके सामने प्रस्तुत करेंगे ! तो फकीर मोहम्मद घोसी जी को शीर्ष पाँच में आने के लिए हमारी ओर से बधाई हम उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है ,आप से आग्रह है की अपनी राय देकर उनके प्रोत्साहन को ऊँचा करें! न स्कूल होती, न भारी बस्ता न होती हालत खस्ता गर भाषा न होती शिक्षा होती न संस्कृति होती कलम-किताब न होती कविता होती न काव्य होता, अनपढ़ शिक्षित मे दीवार न होती गर भाषा न होती विज्ञान न टेक्नोलाॅजी होती न दुनिया पर विनाश की काली छाया होती, मोटर, जहाज न रेल होती और न कैदि