जब भी हम किसी अपरिचित व्यक्ति से मिलते हैं तो या तो हम उसके प्रति उदासीन रहते हैं या फिर उसके प्रति आकर्षण अथवा विरक्ति की भावना हमारे अंदर जन्म लेती है। विरक्ति अथवा उदासीनता का भाव आया तब तो मामला यहीं समाप्त हो जाता है पर यदि हमें उस व्यक्ति के प्रति कुछ आकर्षण अनुभव होता है तो हम यह चाहते हैं कि वह व्यक्ति भी हमें पसन्द करे। हमें कोई अपरिचित व्यक्ति क्यों अच्छा या बुरा लगने लगता है यह हम तुरन्त समझ पायें , यह आवश्यक नहीं है। हमारी पांचों ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से सामने वाले व्यक्ति के बारे में जो जानकारी हमारे जाग्रत व अद्र्धजाग्रत मस्तिष्क तक पहुंचती हैं , उनके आधार पर हमारे भीतर बैठे थर्ड अंपायर का निर्णय आता है - 'आउट' या 'नॉट आउट' ! स्वाभाविक ही है कि अंपायर कुछ कायदे-कानूनों के आधार पर निर्णय लेता है और इस मामले में ये कायदे - कानून बनते हैं -- हमारी शिक्षा-दीक्षा , हमारे संस्कार , हमारे आदर्श , नैतिक मूल्य , हमारी अभिरुचियॉं और हमारे सौन्दर्यबोध आदि के आधार पर । हमारे मस्तिष्क रूपी थर्ड अंपायर को निर्णय लेने में अक्सर पलक झपकने जितना