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Showing posts from June 6, 2009

लो क सं घ र्ष !: गाती है मेरी कविता

पावन उद्देश्य हमारा करता है धुतिमय सविता। चुप निशा उतर आती है, गाती है मेरी कविता ॥ करूणानिधि की वत्सलता विस्मृति का वरदान मिला है। अनवरत तरंगित होती स्मृति से अंकित समय शिला ॥ मेरी पीड़ा जन्मी है प्रतिभा की प्रतिमा बनकर कभी राम सीता बनकर कभी कृष्ण मीरा बनकर॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

लो क सं घ र्ष !: मिली

मेरा यह सागर मंथन अमृत का शोध नही है । सर्वश्व समर्पण है ये आहों का बोध नही है । -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '
कैसा वफा? हमारा सब कुछ छीन-छान कर तुमने हमको भगा दिया है। हमने सब कुछ सौंप दिया था, तुमने कैसा वफा किया है।। चाहत अपनी कब से थी यह,एक बार तो देख पायँ वह। चाहत तुमने पूरी कर दी,बता दिया पर, साथ नहीं रह। इतना सब कुछ हो जाने पर, तुमने उफ तक नहीं किया है। हमने सब कुछ सौंप दिया था, तुमने कैसा वफा किया है।। तुमको हम थे समझ न पाये,इसीलिए तो दर पर धाये। तुमने सब कुछ सौंप दिया यूँ,हम तो कुछ भी नहीं कर पाये। समझ न पाये, बिना चाह के,खुद से क्यूँ? यूँ दगा किया है। हमने सब कुछ सौंप दिया था, तुमने कैसा वफा किया है।। तुमने ना हमको बतलाया,हमको था यूँ ही भरमाया। दिल तो तुम्हारे पास नहीं था,सौंप दी तुमने हमको काया। सत्य बोलने का दावा था, फिर क्यों विश्वास घात किया है। हमने सब कुछ सौंप दिया था, तुमने कैसा वफा किया है।।

लो क सं घ र्ष !: उजाले नाम हमारा उछाल देते है ....

हमारी जान मुसीबत में डाल देते है हमें हमारे वतन से निकाल देते है धमाके आप अंधेरो में कर गुजरते है उजाले नाम हमारा उछाल देते है xxx----xxx---xxx--xxx ----xxx बेखौफ़ घर से निकले सलामत ही घर में आएं बच्चे बुरी बालाओं से हम सबके बच ही जाएं दीवार गिर रही है अगर जुल्म की तो 'सै़फ़' इंसानियत के जितने भी दुश्मन है दब ही जाएं xxx-----xxx-----xxx-----xxx---xxx ग़ज़ल फिर तड़प के करार लिखना है इश्क़ लिखना है प्यार लिखना है ज़हर का है असर फिज़ाओ में और हम को बहार लिखना है लेके सर आ गए है मकतल में दोस्तों की ये हार लिखना है ज़िंदगी का मुतालबा देखो ज़िंदगी को भी यार लिखना है 'सै़फ़' चल-चल के थक गए हैं हम अब सुकूं और क़रार लिखना है मोहम्मद सैफ बाबर मोबाइल -09936008545

लो क सं घ र्ष !: आदित्य बिरला की मोबाइल कंपनी आईडिया द्वारा ठगी

आदित्य बिरला की मोबाइल कंपनी आईडिया अपने उपभोक्ताओ के साथ ठगी कर रही है जिसका उदाहरण यह है की दिनांक 3/6/2009 को आईडिया मोबाइल नम्बर 9616501364 पर 25 रुपये का ई- टॉप अप डलवाया गया और कंपनी की तरफ़ से जवाब आया कि 23 रुपये 6 पैसे उपलब्ध करा दिए गए है । जब की वास्तविक अकाउंट में एक भी रुपया नही आया । कस्टमर केयर से बात करने पर बताया गया की सर्वर डाउन होने कारण आपके अकाउंट में 24 घंटे में रुपया आ जाएगा । 24 घंटे व्यतीत हो जाने के बाद कंपनी के कस्टमर केयर ने बताया की आप के मोबाइल में टॉप अप के बजाये टैरिफ वाउचर डाल दिया गया है जबकि वास्तव में मोबाइल अकाउंट में टैरिफ वाउचर भी नही डाला है और कंपनी के कस्टमर केयर पर टेलीफोन मिलाने पर कंप्यूटर टेप का उत्तर यह आता है की कस्टमर केयर के सभी अधिकारी व्यस्त है अभी आप की बात सम्भव नही है। इस तरह आदित्य बिरला की कंपनी आईडिया अपने उपभोक्ताओ के साथ धोखा-धडी कर रही है जिन-जिन लोगो ने प्राइवेट कंपनियों के सिम ले रखे है उनके साथ यह बड़ी-बड़ी कंपनिया धोखा-धडी फ्रोड कर रही है । केन्द्र की कांग्रेस सरकार इन्ही कंपनियों के चंदो से चुनी गई है इसलिए कोई कार्यवाही

'राममंदिर' सरीखा है मेरठ का 'कमेला' मुद्दा

सलीम अख्तर सिद्दीकी मेरठ शहर आरभ्म से ही एक संवेदनशील और इन्कलाबी रहा है। 10 मई, 1857 को पहली आजादी की लड़ाई यहीं से आरम्भ हुई थी। 1980 के दशक से लेकर 1991 तक इस शहर ने बदतरीन साम्प्रदायिक दंगों को झेला। पूरी दूनिया में मेरठ 'दंगों के शहर' के रुप में कुख्यात रहा। इसी के साथ हफीज मेरठी जैसा शायर, विशाल भारद्वाज जैसा फिल्म निर्देशक, नसीरुद्दीन शाह जैसा क्लासिकल अभिनेता, हरिओम पंवार जैसा कवि और न जाने कितने नामचीन लोगों की सरजमीं भी मेरठ ही रही। इधर, आजकल मेरठ कमेले (कमेला वह स्थान होता है, जहां मीट के लिए जानवरों को हलाल किया जाता है) को लेकर सुर्खियों में है। इस पर जमकर राजनीति हो रही है। भाजपा ने कमेले को साम्प्रदाियक रंग देकर इसे 'राममंदिर' सरीखा मुद्दा बना दिया है। चुनाव चाहे मेयर का हो, विधान सभा का हो या लोकसभा का, कमेला मुद्दा छाया रहता है। अब इस कमेले का पसमंजर भी जान लें। मेरठ का कमेला हापुड़ रोड पर आबादी के बीचों-बीच स्थित है। कभी जब यहां कमेला बना होगा तो यह शहर से बहुत दूर जंगल में रहा होगा। आबादी बढ़ती गयी। कालोनियां बसती रहीं। देखते ही देखते कमेला आबादी के बीच

जिंदगी को सुरीला और नशीला बनाएँ!!

इस बार सुखनसाज ब्लॉग की चर्चा कर रहे है रवींद्र व्यास जी,जिसे हम वेबदुनिया से साभार यहाँ प्रकाशित कर रहे है यह एक सुरीला ब्लॉग है। यह एक नशीला ब्लॉग है। सुरीला इसलिए है कि यहाँ एक से एक फ़नकारों की महफिल सजी हैं। अपनी पुरकशिश और पुरनम आवाज़ के साथ। अपनी ही लय में मगन, सुनने वालों को भी मगन करती हुई। अपनी कलाकारी और गलाकारी के साथ। ये आवाज़ इतनी साफ है जैसे मीठे झील के पानी में आप अपनी आत्मा की झलक देख सकते हैं। ये आवाज़ें इतनी महीन हैं कि इसमे कायनात की धीमी से धीमी आवाज सुनी जा सकती है। जैसे दिल टूटने की आवाज़ या फिर ओस की तरह टपकते आँसू की आवाज़। या विरह में किसी की आह की आवाज़। और यह नशीला इसलिए है कि यहाँ एक से एक आला दर्जे के शायरों का अंदाजे बयां हैं। दिल की बातें हैं, चाँद की बातें हैं, जुल्फों और रात की बातें हैं। मिलन की और विरह की बातें हैं। इश्क में फना हो जाने की और खुदा हो जाने की बाते हैं। यहाँ नाजुक खयाल हैं, बहते जज्बात हैं। दिल से निकली बातें हैं, दिल में उतरती बातें हैं। यह सुखनसाज़ ब्लॉग है। यह सिर्फ ग़ज़लों का ब्लॉग है। यहाँ ग़ज़लें पढ़ीं भी जा सकती हैं और सुनी भी

लो क सं घ र्ष !: वैसे ही मेरा ख्वाब है तावीर के बगैर....

तदवीर जैसे होती है तकदीर के बगैर। वैसे ही मेरा ख्वाब है तावीर के बगैर । उसने जो सारे वज्म किया मुझको मुखातिब मशहूर हो गया किसी तशहीर के बगैर । सुनकर सदाये साकिये मयखाना शेख जी मेय्वर से उठ के चल दिए तक़रीर के बगैर । महफिल से आके उसने जो घूंघट उठा दिया सब कैद हो गए किसी जंजीर के बगैर । दस्ते तलब भी उठने लगे अब बराये रस्म वरना वो क्या दुआ जो हो तासीर के बगैर । दीवाने की नजर है जो खाली फ्रेम पर, वहरना रहा है दिल तेरी तस्वीर के बगैर। जरदार को तलब है बने कसेर आरजू 'राही' को है सुकूं किसी जागीर के बगैर । - डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '