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Showing posts from July 24, 2009

शोक गीत: आचार्य संजीव 'सलिल'

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ शोक गीत: -आचार्य संजीव 'सलिल' (प्रसिद्ध कवि-कथाकार-प्रकाशक, स्व. डॉ. (प्रो.) दिनेश खरे, विभागाध्यक्ष सिविल इंजीनियरिंग, शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय जबलपुर, सचिव इंडियन जियोटेक्नीकल सोसायटी जबलपुर चैप्टर के असामयिक निधन पर ) नर नहीं, नर-रत्न थे तुम, समय कीमत कर न पाया... *** विरल थी प्रतिभा तुम्हारी. ज्ञान के थे तुम पुजारी. समस्याएँ बूझते थे. रूढियों से जूझते थे. देव ने क्षमताएँ अनुपम देख क्या असमय बुलाया?... *** नाथ थे तुम 'निशा' के पर शशि नहीं, 'दिनेश' भास्वर. कोशिशों में गूँजता था लग्न-निष्ठा वेणु का स्वर. यांत्रिकी-साहित्य-सेवा दिग्-दिगन्तों यश कमाया... *** ''शीघ्र आऊंगा'' गए-कह. कहो तो, हो तुम कहाँ रह? तुम्हारे बिन ह्रदय रोता नयन से आँसू रहे बह. दूर 'अतिमा' से हुए- 'कौसुन्न' को भी है भुलाया... *** प्राण थे 'दिनमान' के तुम. 'विनय' के अभिमान थे तुम. 'सुशीला' की मृदुल ममता, स्वप्न थे अरमान थे तुम. दिखाए- सपने सलोने कहाँ जाकर, क्यों भ

सच का सामना करने से घबडा गए नेता लोग..

मुह से अपने जब सच बोलोगे॥ अपनी पोल खुदी खोलोल गे॥ तब तो आफत आएगी ॥ हँसी उदाएगी दुनिया॥ जीवन में आग सी लग जायेगी॥ हँसी..................... हो सकता है बीबी बच्चो से॥ तनी ताना का वार चले॥ जनता की बोली से गोली निकले॥ घर की पक्की दिवार गिरे॥ बुराई के पथ पर चलने वाले॥ क्यो सच्चाई को तौलो गे॥ नाहक में पंगा क्यो लोगे॥ काहे का सच्चाई बोलोगे॥

पूरब से पछुआ डोली है॥

बहुत समय के बाद आज॥ पूरब से पछुआ डोली है॥ अनजाने में य भूल से॥ मुंडेर पे कोयल बोली है॥ सुबह सुबह जब रवि ने .. आँगन में किरण बिखेर दिया॥ हँसा गुलाब खिल खिला कर॥ saरी सुगंध उडेर दिया॥ दीर्घ काल से रूठी मैना॥ फ़िर तोता से बोली है॥ बहुत समय के बाद आज॥ पूरब से पछुआ डोली है॥ सूखी कलियाँ हरी हुयी है॥ उत्सव का मौसम आया है॥ ममता से झुक गई सखा है॥ गगन नीर टपकाया है॥ आँखे भर गई देख प्रीतम को॥ उनकी सूरत भोली है॥ बहुत समय के बाद आज॥ पूरब से पछुआ डोली है॥ नभ से पुष्प की वर्षा होती ॥ मधुर गीत नदियों ने गा ली॥ मौसम मतवाला हंस के बोला॥ तेरी दुःख की बदली जा ली॥ सूखी नैना बहुत दिनों पर॥] फ़िर से पलके खोली है॥ बहुत समय के बाद आज॥ पूरब से पछुआ डोली है॥

अदने से पत्रकार की इतनी हिम्मत अमिताभ को आइना दिखाने की जुर्रत करे!

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी मुंबई के अंग्रेजी टेब्लायड अखबार मिड-डे में अमिताभ बच्चन के परिवार के द्वारा पर्यावरण को हानि पहुंचानी वाली स्पोर्ट्स यूटिलिटी वेन के इस्तेमाल करने, जो कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन अन्य गाड़ियों की तुलना में अधिक करती है, की आलोचना के जवाब में मिड-डे के संवाददाता तुषार जोशी पर अपने ब्लॉग पर सवालों की झड़ी लगा दी है। अमिताभ ने जो सवाल किए हैं, वे बचकाना ही नहीं, बेमतलब भी हैं। मसलन उनका यह कहना कि 'अखबारी कागज पेड़ों की छाल से तैयार किया जाता है, जिसके लिए हरे पेड़ों को काटकर पर्यावरण को बिगाड़ा जा रहा है, इसलिए अखबार छपने बन्द होने चाहिए।' उन्होंने तुषार जोशी को मोबाइल इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी है, क्योंकि मोबाइल के इस्तेमाल से सेहत पर गलत असर पड़ता है। अमिताभ बच्चन को क्या यह नहीं पता कि कागज पर सिर्फ अखबार ही नहीं छपता, किताबें और कापियां भी छपती हैं। क्या पढ़ना-लिखना बन्द कर देना चाहिए ? स्कूलों में ताले डाल देने चाहिए ? अमिताभ बच्चन साहब अखबार अभी तक आज की जरुरत है। इनका विकल्प नहीं है। ठीक है। न्यूज चैनल हैं। इंटरनेट है। लेकिन ये कभी भी अखबार का विकल्प नह

पटना में दिनदहाड़े लड़की का चीरहरण

पटना. बिहार की राजधानी पटना में आज तालिबान जैसी घटना का एक शर्मनाक नजारा देखने को मिला। शहर के भीड़-भाड़ वाले रास्ते पर एक लड़की के उपर चोरी का झूठा आरोप लगाकर उसके जिस्म पर मौजूद कपड़े फाड़े गए। प्राप्त जानकारी के मुताबिक लड़की अपने ब्वॉय फ्रेंड के साथ घूम रही थी तभी दोनों में किसी बात को लेकर अनबन हुई और लड़की ने लड़के से उसका मोबाइल छीन लिया जिसके बाद लड़के ने लड़की पर चोरी का आरोप लगाकर भीड़ एकत्रित कर लिया जिसके बाद शुरु हो गया तालिबानी हैवानियत। वहां मौजूद कुछ लोगों ने लड़के-लड़की को जिस्मफरोसी के धंधें में लिप्त होने को लेकर दोनों को जमकर पीटा,इसके बाद समाज के ये गुंडे लड़की का सबके सामने बीच सड़क पर चीर हरण करने लगे। लड़की के शरीर पर मौजूद कपड़ो को ये लोग कुत्तों की तरफ फाड़ दिए। सबसे बड़ी बात यह है कि उस भीड़ में ऐसा कोई भी शख्स नहीं था जो यह बोल सके कि यह गलत हो रहा है। सभी इस घटना को रोमांचक अंदाज में लेकर मजा ले रहे थे। लड़की चीख-पुकार कर रहम की भीख मांग रही थी लेकिन सभी मूक बनकर सिर्फ नजारा देख रहे थे। इतने शर्मनाक घटना के बाद वहां की पुलिस अपना बचाव