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Showing posts from March 20, 2009
तेवरी आचार्य संजीव 'सलिल' खोटे सिक्के हैं प्रचलन में. खरे न बाकी रहे चलन में. मन से मन का मिलन उपेक्षित. तन को तन की चाह लगन में. अनुबंधों के प्रतिबंधों से- संबंधों का सूर्य गहन में. होगा कभी, न अब बाकी है. रिश्ता कथनी औ' करनी में. नहीं कर्म की चिंता किंचित- फल की चाहत छिपी जतन में. मन का मीत बदलता पाया. जब भी देखा मन दरपन में. राम कैद ख़ुद शूर्पणखा की, भरमाती मादक चितवन में. स्नेह-'सलिल' की निर्मलता को- मिटा रहे हम अपनेपन में. * * * * * समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपियर टाऊन, जबलपुर ४८२००१ vaartaa : ०७६१-२४१११३१, चलभाष: 0९४२५१ ८३२४४ई मेल: सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम , ब्लॉग: संजिवसलिल.ब्लागस्पा ट.com

किससे कहूँ अपनी कहानी ..............

कभी सोचता हूँ की मैं कुछ कहू कभी सोचता हूँ की मैं चुप रहूँ आप से कहूँ या किसी के बाप से कहूँ या देश के बिगडे हालत से कहूँ जेल से कहूँ या हवालात से कहूँ अपने पत्र से कहूँ या ब्लॉग से कहूँ मन से कहूँ या दिल से कहूँ वेग में कहूँ या आवेग में कहूँ देश से कहूँ या वेश से कहूँ समता से कहूँ या ममता से कहूँ सपा से कहूँ या बसपा से कहूँ भाजपा से कहूँ या काग्रेस से कहूँ लालू से कहूँ या पासवान से कहूँ सैतान से कहूँ या इंसान से कहूँ टाटा से कहूँ या विरला से कहूँ मित्तल से कहूँ या अम्बानी से कहूँ हीरो से कहूँ या मारुती से कहूँ विप्रो से कहूँ या सत्यम से कहूँ अमिताभ से कहूँ या शाहरुख से कहूँ आमिर से कहूँ या सलमान से कहूँ एस से कहूँ या करीना से कहूँ राखी से कहूँ या मल्लिका से कहूँ बाबा से कहूँ दादी से कहूँ चाचा से कहूँ या मामा से कहूँ ताऊ से कहूँ या मौसा से कहूँ बुआ से कहूँ या मौसी से कहूँ

प्यार के इस जज्बे को हमारा सलाम.........!!

प्यार के इस जज्बे को हमारा सलाम.......!! ..............दोस्तों , सबसे पहले जैक ट्वीड के उस जज्बे को हमारा सलाम.......और सच कहूँ तो इन सब घटनाओं से हममें मानवता के प्रति फिर से विश्वास पैदा हो जाता है....वो विश्वास जो कम-से-कम प्रेम के अर्थों में हममे से पूरी तरह छीज चुका है.....और उसकी जगह अब हमेशा लिए एक वितृष्णा हममे जन्म ले चुकी है....दोस्तों.....ट्वीड भाई सचमुच इक मिसाल के रूप में हमारे सामने हैं....और जेड़ गुडी का साहस भी मौत पर उनके अटूट विश्वास को रेखांकित करता करता है.........जब मरना तय हो ही गया........तो रोना काहे का.......हंसते हुए क्यूँ ना मरा जाए....दोस्तों.....मैं कहना तो यही चाहता हूँ कि जब मरना तय है ही तो फिर जीकर ही क्यूँ ना मरा जाए.........आईये ना इसी बात पर हम सब जी लें........सच्चे इंसानों की तरह....जेड़ गुडी जी....ट्वीड जी...आप सबको हमारा बहुत-बहुत-बहुत प्रेम............!!......... दोस्तों ....... आप ही बताओ ना क्या आप सब भी इंसान की तरह जीने को तैयार हो ....?? सबसे मोहब्बत करने ...... सबकी मदद करने को तैयार हो ......?? इ

क्या यह सिर्फ एक बलात्कार है...?

विवेक रस्तोगी नई दिल्ली, बृहस्पतिवार, मार्च 19, 2009 >सुबह-सुबह टीवी पर एक खबर देखी... बस, सोचता ही रह गया... कोई बाप ऐसी हरकत करने की कल्पना भी कैसे कर सका... कोई बाप इतना वहशी कैसे हो सकता है... कोई मां पैसे के लालच में इतनी अंधी कैसे हो गई कि अपनी आंखों के सामने अपने ही कलेजे के टुकड़ों की अस्मत लुटते न सिर्फ देखती रही, बल्कि उस वहशी बाप की मदद भी करती रही... यकीन मानिए, इस हरकत को 'वहशियाना' लिखते हुए भी लग रहा है, कि यह बहुत हल्का शब्द है, इस कुकृत्य का ज़िक्र करने के लिए आज से पहले ऐसी किसी हरकत का ज़िक्र न सुना हो, ऐसा भी नहीं है, लेकिन किसी तांत्रिक के सुझाव पर, अमीर बनने के लिए अपनी ही सिर्फ 11 साल की मासूम बेटी से बलात्कार करने, और फिर सालों तक करते रहने की यह खबर कुछ ज्यादा ही विचलित कर देती है अंतस को... सोचकर देखिए, कोई भी बच्चा कैसी भी परेशानी का सामना करते हुए स्वाभाविक रूप से सबसे पहले मां या बाप की गोद में सहारा तलाश करने के लिए भागता है, लेकिन ऐसे मां-बाप हों तो क्या करे वह मासूम...? एक बेटी के साथ सालों तक यह घिनौना कृत्य होते रहने के बावजूद जब

मुस्लिम खुद को बदलें,हम उनकी तकदीर बदल देंगे

मुस्लिम मतदाता कुछ नहीं सोच सकता क्योंकि उसे इस देश के बारे मे सोचने का समय ही नहीं है,असलियत यही है की भारत का मुस्लिम,भारत मे रहकर भी,पकिस्तान की दलाली करता और भारत कही पकिस्तान पर हमला न कर दे,अल्लाह से इसी की दुआ मांगता रहता है!लेकिन इन धोखेबाजों की कौन बताये की यह देश तुम्हारे सहारे के लिए नहीं तड़प रहा है,इस देश ने तुम लोगों को क्या नहीं दिया! फिर भी दिल मे इस देश के प्रति जरा भी इज्जत नहीं है!अगर ऐसा नहीं होता तो -तो तुम लोगों को वन्देमातरम गाने मे क्या दिक्कत है अगर ऐसा नहीं होता तो क्या सारा हिन्दुस्तान तुम से नफरत क्यों करता,इस देश मे ईसाई भी है उनसे तो कोई नफरत नहीं करता ! मतलब सीधा है आप लोगों की फितरत ही दगावाजों की है! आप लोगों को कुछ बदलने की जरुरत नहीं है बस जरुरत है तो खुद को बदलने की अम्बरीश अग्निहोत्री आगरा पढ़ें के आगे यहाँ

सभ्यता का संघर्ष कब तक …..

संसार के समस्त जीवधारियों का जीवन परस्पर संघर्ष की कहानी है। अपने आप को मौत से बचाते हुए अच्छी जिन्दगी की तलाश में पूरा जीवजगत आपसी टकरावों में उलझा रहा है। मसलन, सर्प और मेंढक के बिच का टकराव, बड़ी मछलियों का छोटी मछलियों के साथ टकराव आदि अनेक उदहारण इस सन्दर्भ में दिए जा सकते हैं। जिजीविषा की इस लडाई में मानव को कैसे भूल सकते हैं, असल में मनुष्य- मनुष्य के मध्य जाति-धर्म-भाषा अर्थात सभ्यताओं का संघर्ष नई बात नही है। संपूर्ण वैश्विक सन्दर्भ में पिछले २००० वर्षों के इतिहास को खंगाले तो कई जानने योग्य तथ्य प्रकाश में आते हैं । यही वो समय था जब विश्व इतिहास में नया बदलाव आरंभ हो चुका था। आज के इस विवादित और आतंकित भविष्य की नीव भी पड़ चुकी थी। अब तक ईसाइयत की मान्यताओं को न मानने वाले १५० करोड निरीह लोगों की हत्या की जा चुकी है। लगभग ४८ सभ्यताओं को नष्ट किया जा चुका है। ईसाइयत के बाद प्रगट हुए इस्लाम ने भी इसी परम्परा को अपनाया। इसके पीछे धर्मान्धों की यह मानसिकता काम करती है कि उनके धर्म में जो है वही एकमात्र और अन्तिम सत्य है। समूची दुनिया को एक धर्म में रंग डालने कि कवायद ठीक वैसी ही है

कल्कि अवतार को पहचाने !

हम सब एक हैं, क्या ये सही नहीं है....दिल से पूछिये और पता करिए वो सब रिश्ते, वो सब डोर जो आपस में जोड़ने के काम आती हों.......उन रिश्तों और डोर में सबसे पहले हैं वेद, पुराण, उपनिषद, बाइबल, कुरान और हदीस आदि पढ़े और जाने वास्तविकता ! इसी प्रयास में एक प्रयास- कल्कि अवतार को पहचाने !!! कल्कि अवतार कौन है? क्या कल्कि अवतार अभी आएगा या आ चुका है? वेद क्या कहते हैं इस बारे में, कुरान क्या कहता है? ये सब जानना है तो पढ़े ये लेख- "कल्कि अवतार को पहचाने?" Muhammad Muhammad Saleem Khan kalki awatar ko pahchano Publish at Scribd or explore others: Religion & Spiritual Humanities bible prophet सारांश यहाँ सलीम खान स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़ लखनऊ व पीलीभीत, उत्तर प्रदेश
********************************* गीतिका तुम संजीव 'सलिल' सारी रात जगाते हो तुम. नज़र न फिर भी आते हो तुम. थक कर आँखें बंद करुँ तो- सपनों में मिल जाते हो तुम. पहले मुझ से आँख चुराते, फिर क्यों आँख मिलाते हो तुम? रूठ मौन हो कभी छिप रहे, कभी गीत नव गाते हो तुम 'सलिल' बांह में कभी लजाते, कभी दूर हो जाते हो तुम. नटवर नटनागर छलिया से, नचते नाच नचाते हो तुम ****************************

ग़ज़ल

आँखों में बस गई तेरी तस्वीर क्या करें लेकिन जुदा है हमारी तकदीर क्या करें बेहतर येही है आप हमें भूल जाईये उलटी है अपने ख्वाब की ताबीर क्या करें कागज़ कलम है हाथ में लिखना है हाले दिल बैठे हुए है सोच में तहरीर क्या क्या करें है यार हमको वादा मुलाकात का मगर हालत की पों में जंजीर क्या करें किस्मत से तू हमारी बहुत दूर हो गया दिल से लगा के अब तेरी तस्वीर क्या करें कहते है जिसे हौसला वो अप्प में नही हातो में दे के आपके शमशीर क्या करें आँखों में एक हुजूम है ख्वाबों का ए अलीम मिलती नही उन्हें ताबीर क्या करें।

रिश्ता ( प्यार इश्क और मोहब्बत )

कहते है अल्लाह , इश्वर, ने सबसे खूबसूरत और ज़हीन कोई ऐसी चीज़ बनाया तो इंसान. उसके बाद इंसानियत को एक दुसरे से जोड़ा ' प्यार, इश्क, और मोहब्बत से ' अब जब प्यार शब्द का नाम आही गया तो क्यों न हम तफसील से लिख कर अप्प सभी तक पहुँचाऊ , प्यार' क्या है ये एक दिली रिश्ता है जो दिलो से निकलकर दूसरों तक पहुँचती है, इस पारकर इससे कई रिश्ते पनपते है चाहे वो माँ का प्यार हो भाई- बहन का हो , मुल्क से हो , वगैरह , लेकिन आज दुनिया कितनी तेजी से भाग रही है उसी तरह इंसान भी सभी रिश्तों के अल्फाज़ को तक पर रखकर उस अल्फाज़ के माने को अलग थलग कर दिया है आज इंसान सिर्फ पैसों से ही अपना रिश्ता नाता बना लिया है . मां बाप , भाई- बहन , यह कैसा रिश्ता है वो तो कब का भूल चूका है , जैसे जैसे मुल्क तरक्की के रस्ते से गुज़र रहा है वैसे वैसे इंसान माडर्न होता चला जा रहा है, आज का प्यार सिर्फ एक दिखावा वो छलावा है अगर आपके पास पैसे है तो रिश्ते अपने आप बनते चले जाते चाहे वो किसी मायेने से हो , मिसाल के तौर पर आज हम नौजवानों की प्यार इश्क और मोहब्बत की तरफ ले जाते है , आज का नौजवान प्यार को अपनी जेब में रखत

बाल गीत

बंदर मामा .-आचार्य संजीव 'सलिल' बंदर मामा देख आइना काढ़ रहे थे बाल, मामी बोली, छीन आइना- 'काटो यह जंजाल'। मामी परी समझकर ख़ुद को, करने लगीं सिंगार. मामा बोले- 'ख़ुद को छलना है बेग़म बेकार. हुईं साठ की अब सोलह का व्यर्थ न देखो सपना'. मामी झुंझलायीं-' बाहर हो, मुंह न दिखाओ अपना. छीन-झपट में गिरा आइना, गया हाथ से छूट, दोनों पछताते, कर मलते, गया आइना टूट. गर न लडाई करते तो दोनों होते तैयार, सैर-सपाटा कर लेते, दोनों जाकर बाज़ार. मेल-जोल से हो जाते हैं 'सलिल' काम सब पूरे, अगर न होगा मेल, रहेंगे सारे काम अधूरे. **************************************