तेवरी आचार्य संजीव 'सलिल' खोटे सिक्के हैं प्रचलन में. खरे न बाकी रहे चलन में. मन से मन का मिलन उपेक्षित. तन को तन की चाह लगन में. अनुबंधों के प्रतिबंधों से- संबंधों का सूर्य गहन में. होगा कभी, न अब बाकी है. रिश्ता कथनी औ' करनी में. नहीं कर्म की चिंता किंचित- फल की चाहत छिपी जतन में. मन का मीत बदलता पाया. जब भी देखा मन दरपन में. राम कैद ख़ुद शूर्पणखा की, भरमाती मादक चितवन में. स्नेह-'सलिल' की निर्मलता को- मिटा रहे हम अपनेपन में. * * * * * समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपियर टाऊन, जबलपुर ४८२००१ vaartaa : ०७६१-२४१११३१, चलभाष: 0९४२५१ ८३२४४ई मेल: सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम , ब्लॉग: संजिवसलिल.ब्लागस्पा ट.com