Skip to main content

Posts

Showing posts from September 4, 2009

दीप जगमगाये सारी-सारी रात।।

नेह की बाती जली मुस्कायी रात। दीप जगमगाये सारी-सारी रात।। रिमझिम फुहार गई वो दूर देश में। आ गई है ऋतु शरद शीतल भेष में। पवन मंद-मंद बहे सारी-सारी रात।। दीपों के संग जलते सभी ही विकार। जगमग-जगमग देखो लगे है संसार। मेल-जोल सुन्दर सारी-सारी रात।। शहर गाँव घर आँगन द्वार-द्वार में। फुलझड़ियाँ अब नहीं किसी इंतज़ार में। पल-पल उमंग बढ़े सारी-सारी रात।। भूलते नहीं बनती ये मोहक रात। होकर अंधेरी लगे ये उजली रात। खुशी-खुशी सबसे हो रही मुलाक़ात।। anshlal pandre

लो क सं घ र्ष !: आखिर इस पुलिस का चेहरा कब बदलेगा

कालाढूंगी में सन्नाटा पसरा हुआ है। चारों तरफ खाकी वर्दीधारी घूम रहे हैं। क्षेत्र में धारा 144 लगी है लेकिन माहौल कफ्र्यू जैसा है। नौजवान घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं या उनके मां-बाप ने डर के मारे उन्हें क्षेत्र से बाहर भेज दिया है। हर किसी की जुबां पर एक ही चर्चा है कि अब क्या होगा। पुलिसकर्मी की हत्या व थाने पर आगजनी के जुर्म में कौन-कौन धरा जाएगा। क्षेत्र में पुलिस की दबिशें जारी हैं, खुफिया विभाग के लोग सादी वर्दी में अपराधियों को सूंघ रहे हैं। जनता की ‘मित्र पुलिस’ जनता की शत्रु का रोद्र रूप धारण कर चुकी है। क्षेत्र का प्रत्येक निवासी पुलिस का अपराधी है, वह कभी भी धरा जा सकता है। पुलिस ने बहीखाता खोल लिया है जिसमें 15 लोग नामजद हैं व अन्य 400 का नाम इस बहीखाते में लिखा जाना बाकी है। गांव में दबिश देने 2-4 पुलिस वाले नहीं जाते, दबिश देते समय पुलिस वालों की संख्या 200 तक भी होती है, उनका मकसद जनता में दशहत पैदा करना है। छुटभैय्ये नेता अपने आकाओं से अपना नाम पुलिस के मुकदमें में आने से बचाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। खाकी के आगे जनता बेबस, असहाय नजर आ रही है। 23 अगस्त की पूर्वाह्न का स

आत्महत्या..

मिट्टी के भाव .अपनी जिंदगी गवा रहे है॥ इस पवित्र पावन धरती से रूठ के जा रहे है॥ क्यो करते है आत्म ह्त्या क्या जीने का हक़ नही है॥ मरने के बाद जीने की तरकीब बता रहे है... संघर्ष ही जीवन है जीना ही चाहिए॥ जीने के साथ गम को पीना ही चाहिए॥ हार मान लेना बुध्मानी नही॥ असफल हो जाना बदनामी नही॥ जाने के बाद आने का रास्ता दिखा रहे है॥

बढ़ेगा राष्ट्रभाषा का दायरा

राजकुमार साहू , जांजगीर हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा है, लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं के प्रभाव के कारण इसका दायरा सिमट कर रह गया है। हिन्दी हमारे देश का गौरव व अभियान है और किसी देश को कोई भाषा ही एकता के सूत्र बांधे रख सकती है, क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति का यह सशक्त माध्यम होती है। पिछले दिनों केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने समान कोर पाठ्यक्रम की वकालत करते हुए राष्ट्रभाषा हिन्दी को देश के सभी स्कूलों में पढ़ाए जाने को लेकर जिस ढंग से जोर दिया है, यह अच्छा संकेत है। यदि ऐसा होता है और देश भर के सभी स्कूलों में हिन्दी पढ़ाया जाता है तो राष्ट्रभाषा का दायरा तो बढ़ेगा ही, इससे हर भारतवासियों के लिए किसी भी राज्य या हिस्से में अभिव्यक्ति को लेकर कहीं भी असमंजस की स्थिति पैदा नहीं होगी, जो अक्सर ऐसी बात सामने आती रहती है। राष्ट्रभाषा हिन्दी, भारत का स्वाभिमान का प्रतीक है तथा इसका अनेकता में एकता के सूत्र वाक्य का देश में अपना एक महत्व है, क्योंकि भारत ही दुनिया का ऐसा देश है, जहां हर मामले में विविधता पाई जाती है। चाहे वह भाषा की बात हो या फिर धर्म की तथा जाति हो या अन्य क्षेत्रीय

लो क सं घ र्ष !: क्या पतन समझ पायेगा...

मानव का इतिहास यही , मानस की इतनी गाथा । आँखें खुलते रो लेना , फिर झँपने की अभिलाषा ॥ जग का क्रम आना - जाना , उत्थान पतन की सीमा । दुःख - वारिद , आंसू - बूँदें , रोदन का गर्जन धीमा ॥ उठान न देखा जिसने , क्या पतन समझ पायेगा । निर्माण नही हो जिसका , अवसान कहाँ आयेगा ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '