सिने बहसतलब के पहले दिन बहुत देर से पहुंचा अनुराग कश्यप बस उठकर जाने ही वाले थे । मंच पर डॉ.चन्द्र प्रकाश द्रिवेदी,अभिषेक शर्मा और स्वानंद किरकिरे मुख्य रूप से उपस्तिथ थे । वहा होने वाली जायदा बातें तो याद नहीं रही बस स्वानंद की एक बात याद रह गयी,स्वानंद ने कहा की आज गानों की हालत फिल्म में उतनी ठीक नहीं है,कोर्पोरेट कंपनी को आज संगीत और म्यूजिक की जरुरत बस उतनी है जितनी की मोबाइल कंपनी को कॉलर टियून की । स्वानंद की बात ने गहरा प्रभाव छोड़ा की आज लेखक की स्वतंत्रता प्रोडूसर और कंपनी के मुनाफे में कैद है,लेखक की कलम उनके ही इशारे पर चलती है । अनुराग की फिल्मो की बात करें तो अनुराग की फिल्मों के गीतों में हमेशा एक वीर रस और उल्लास्ता को महसूस किया जा सकता है लेकिन यह दोनों चीज़ें कोर्पोरेट कंपनी के फॉर्मेट में बहुत जायदा जगह पाती हो ऐसा नहीं है तो ऐसे में मेरे जेहन में यह सवाल अगले दिन तक कौंधता रहा की क्या कुछ दिन बाद अनुराग की फिल्मो से गीत गायब हो जाएँगे । क्योंकि जब गीत बिकेंगे ही नहीं तो उन पर बहुत अधिक समय तक पैसा खर्च करना शायद इतनी समझदारी की बात नहीं मानी जाएगी ।