Skip to main content

Posts

Showing posts from January 21, 2011

बदहाल हंगल की मदद को आगे आए बिग बी

श्री ए. के. हंगल को आपने विभिन्न किरदारों को जीवंत करते देखा होगा,लेकिन जिंदगी की रफ़्तार में आज यह कलाकार खुद एक किरदार बनकर रह गया है, श्री ए. के. हंगल की आर्थिक स्तिथि ठीक नहीं है और काफी तंगहाली के बीच गुजर बसर कर रहे है बह भी ऐसे समय जब उम्र का तकाजा है, सच उनकी यह हालत देखकर मन को पीड़ा पहुँचती है की एक कलाकार का यह हश्र भी हो सकता है,आज संपूर्ण बॉलीवुड को श्री ए. के. हंगल की सहायता के लिए आगे आना चाहिए,अब तक कुछ महारथी इस कार्य में सहयोग कर रहे है     बॉलीवुड के बीते दौर के जानेमाने अभिनेता ए. के. हंगल के साथ फिल्म 'शोले' और 'शराबी' में काम कर चुके बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन ने उनकी मदद के लिए हाथ बढ़ाया है। इससे पहले आमिर खान भी हंगल की मदद करने की घोषणा कर चुके हैं । अमिताभ ने अपने ब्लॉग 'बिगबी डॉट बिगअड्डा डॉट काम' पर लिखा है, "यह काफी पीड़ादायक है कि बॉलीवुड के बहुत निष्ठावान एवं समर्पित कलाकारों में से एक श्री ए. के. हंगल की हालत काफी खराब चल रही है। वह इस समय बहुत ही बदहाली और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं । मुझे वेबसाइट्स के जरिये इसकी जानका

मेरी मौत खुशी का वायस होगी ----------मिथिलेश

जिन्दगी जिन्दादिली को जान ए रोशन यहॉं वरना कितने मरते हैं और पैदा होते जाते हैं। क्रान्तिकारी रोशन सिंह का जन्म शाहजहॉंपुर जिले के नबादा ग्राम में हुआ था । यह गांव खुदागंज कस्बे से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर है। इनके पिता का नाम ठाकुर जंगी सिंह था। इस परिवार पर आर्य समाज का बहुत प्रभाव था। उन दिनों आर्य समाज द्वारा चलाए जा रहे देशहित के कार्यों से ठाकुर साहब का परिवार अछूता ना रहा। श्री जंगी सिंह के चार पुत्र ठाकुर रोशन सिंह, जाखन सिंह, सुखराम सिंह, पीताम्बर तथा दो लड़कियॉं थी । आपका जन्म 22 जनवरी को सन् 1892 को हुआ था। ठाकुर साहब काकोरी काण्ड के क्रान्तिकारियों में आयु में सबस बड़े तथा सबसे अधिक बलवान तथा अचूक निशानेबाज थे । असहयोग आन्दोलन में शाहजहॉंपुर तथा बरेली जिले के ग्रामिण क्षेत्र में उन्होने बड़े उत्साह कार्य किया। उन दिनों बरेली में एक गोली कांड हुआ था जिसमें उन्हें दो वर्ष की बड़ी सजा दी गई । वे उन सच्चे देशभक्तों में थे जिन्होने अपने खून की अन्तिम बूद भी भारत मॉं की भेंट चढ़ा दी । रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाक उल्ला खॉं, राजेन्द्र लाहिड़ी की तरह वे भी बहुत साहसी और सच्चे देशभ

उलझन: इन्हें परिवार में सभी की चिंता है, पर मेरी नहीं

इस बार उलझन में हम बात कर रहे है विनीता जी की,यह एक संयुक्त परिवार से है जहा एक लम्बा अरसा गुजार देने के बाद भी वो समस्यों से दो चार हो रही है उन्होंने अपनी समस्या को रखा है जहा कुछ दोस्तों ने अपने सुझाबों के माध्यम से निराकरण करने की कोशिश की है,हमें आपके भी जवाबों की प्रतीक्षा है और अगर आप भी कशमकश या उलझन में है तो हमें कहें :- माडरेटर   उलझन विनीता सिंह कोटा, राजस्थान मैं कार्यरत महिला हूं। हमारा संयुक्त परिवार है। पति लेखाकर हैं व शादी को पंद्रह साल पूरे हो चुके हैं। सालभर से मैं मानसिक तनाव झेल रही हूं। पति जरा-जरा सी बात पर चिल्लाना शुरू कर देते हैं। साथ ही इनकी मां भी शुरू हो जाती हैं। ये अपनी बातें बहन, मां, मामी और भाइयों से बांटते हैं, लेकिन मुझसे कभी नहीं। बड़ों की देखा-सीखी बेटी भी मुझे कुछ नहीं समझती। कई बार सोचती हूं आत्महत्या कर लूं या अलग हो जाऊं, पर परिवार की प्रतिष्ठा का ख्याल आते ही रुक जाती हूं। हमारे बन रहे नए मकान की केवल नींव भरकर छोड़ दी है। पति मुझे कहते हैं ‘तेरी वजह से काम बंद किया है, तू हमेशा घर में लड़ाई-झगड़े करती रहती है न इसलिए..।’ इन्हें परिव