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Showing posts from August 3, 2010

पोंगा पंडित....

पोंगा पंडित सर मुड़ा के॥ आये थे जब काशी से॥ घरवाली ने नज़र उतारा॥ काली वाली लाठी॥ एक लाठी के पड़ते खन॥ पंडित कय फूटा कपार॥ हाय हाय पंडित जी रोवे॥ निकली खूने कय बौछार॥ अकड़ के बोलिस पंडित कय मेहर॥ pitwaaugi मदरासी से॥ गाँव वाली सब भाग के आये॥ पोगापंडित आया है॥ बहुत दिनों बाद गाँव में॥ अपनी शक्ल देखाया है॥ मह्तुनिया से बात करत है॥ बोल रही झाकरासी से॥

जब दिल मेरा टूटा था..

जब दिल का तार टूटा था॥ गम बदली छायी थी॥ बादल कड़क रहे थे॥ आंधी आयी थी॥ यादे बहुत रुलाई थी॥ समय अचेत हुआ था॥ पुरवाई मुरझाई थी॥ साड़ी रश्मे तोड़ दिए थे॥ मै वापस आयी थी॥ यादे बहुत रुलाई॥ मुह मोड़ लिए थे सब ने.. मेरी उडाये थे॥ भाग-भाग कह करके ॥ हमको दौडाए थे॥ मजबूर हुए थी तब मै॥ वह राज़ बतायी थी॥