क्यों पापा ! वह स्वयं बारात ले कर क्यों नहीं जा सकती ? वह स्वयं यहाँ आकर क्यों नहीं रह सकता ? सोचिये , मेरे जाने के बाद आप लोगों का ख्याल कौन रखेगा ? शालू एक साँस में ही सबकुछ कह गयी। 'हाँ बेटा, यह हो सकता है। परन्तु यदि वह लड़का भी परिवार की इकलौती संतान हो तो ?' 'शाश्वत चले आ रहे मुद्दों पर यूंही भावावेश में, या कुछ नया करें , लीक पर क्यों चलें ? की भावना में बहकर , बिना सोचे समझे चलना ठीक नहीं होता; अपितु विशद- विवेचना, हानि-लाभ व दूरगामी प्रभावों,परिणामों पर विचार करके ही निर्णय लेना चाहिए। ' " मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि कौन किसके घर रहने जाए, कौन बरात लाये । यदि पति-पत्नी, सुहृद, युक्ति-युक्त विचार वाले, उचित-अनुचित ज्ञान वाले हैं तो दोनों ही स्थितियों में वे एक दूसरे के परिवार वालों , माँ -बाप का सम्मान करंगे और परिवार जुड़ेंगे। समस्याएं नहीं रहेंगीं । शाश्वत बात वही है कि व्यक्ति मात्र को अच्छा ,न्याय एवं सत्य कानिर्वाह करने वाला होना चाहिए। " शालू के पिता पुनः कह