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Showing posts from August 6, 2010

ओलंपिक की मेजबानी मिल जाए तो..

Sharwan Garg गंदगी पैदा करने के मामले में राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों ने यमुना को भी पीछे छोड़ दिया है। सुरेश कलमाडी और उनकी टीम चाहे तो उजागर हुई राष्ट्रीय शर्म के लिए बारिश को कोस सकती है। अगर बारिश नहीं होती और राष्ट्रमंडल खेलों के लिए तैयार हो रहे स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स की छतें इस तरह नहीं टपकतीं या आधे-अधूरे स्टेडियमों में पानी नहीं भरता तो नई दिल्ली में बड़े से बड़े भ्रष्टाचार को भी बिना डकार लिए हजम कर जाने की क्षमता है। पता ही नहीं चल पाता कि राष्ट्रीय खेल कब चालू हुए और कब खत्म हो गए। हमें आज पता नहीं है कि 1982 में एशियाड कैसे सम्पन्न हो गए थे। कल्पना ही की जा सकती है कि अगर भारत को ओलंपिक खेलों को आयोजित करने का अवसर मिल जाए तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हासिल हो सकने वाले कलंक के टीके का आकार कितना बड़ा होगा। भारत में खेल संगठनों पर राजनीतिक पतंगबाजी करने वालों का कब्जा है। इनमें ज्यादातर वे लोग हैं, जिन्हें चुनावी रैलियों में पैसे बांटकर भीड़ जमा करने, मिलावटी तेल में बनाई गई पूड़ी और सब्जी के पैकेट बंटवाने और माननीय अतिथियों के स्वागत में छोटे-छोटे स्कूली बच्चों को चिलचिलाती

हे रूप वती इठलाओ नहीं ॥

हे रूप वती इठलाओ नहीं ॥ यौवन के गर्दे झड जायेगे॥ दो साल के अन्दर ३ बच्चे॥ मम्मी मम्मी बुलायेगे॥ जो आँख पे कजली चमक रही है॥ तब ये सूखी पड़ जायेगी॥ ये खिलती मुस्कान तुम्हारी॥ बिलकुल माध्यम पड़ जायेगी॥ अभी जो अंकुर फूट रहे है॥ बाद में तुम्हे सतायेगे॥ हे रूप वती इठलाओ नहीं ॥ यौवन के गर्दे झड जायेगे॥ जो कमर लचाका खात तुम्हारी॥ काले केश लहराते है॥ गालो पर जो काला तिल है॥ सुन्दरता तेरी बताते है॥ दो साल का अंतर बाकी है॥ बिलकुल ये ढीले पड़ जायेगे॥ हे रूप वती इठलाओ नहीं ॥ यौवन के गर्दे झड जायेगे॥ जो मुस्कान गिराती मोती है॥ मधु घोलती बोली है॥ अचरज भरी जवानी है॥ यही तेरी कहानी है॥ थोड़ा सा तुम गम खा लो॥ मौसम खुद तुम्हे बतायेगे॥ हे रूप वती इठलाओ नहीं ॥ यौवन के गर्दे झड जायेगे॥