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Showing posts from December 23, 2009

लो क सं घ र्ष !: जल को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित करने की साजिश

एक समय में वनों को बचाए रखने के लिए वन सम्पदा को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित किया गया । वन सम्पदा को बनाये रखने के लिए विभिन्न तरह के विधियों का निर्माण किया गया । जिसका असर यह हुआ कि सरकार , उद्योगपति विभिन्न योजनाओ के नाम पर जमकर वन सम्पदा को नष्ट करने के अधिकारी हो गए । वन सम्पदा से जनता वंचित हो गयी । वन विभाग ने विभिन्न योजनाओ के तहत कागज पर ही पेड़ लगाये । जनता ने अपनी जमीनों के ऊपर पेड़ लगाकर पर्यावरण से लेकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाही । जिसका हश्र यह हुआ कि पेड़ मालिक को जब अपने उपयोग के लिए अथवा व्यावासिक उपयोग के लिए उनको कटवाने की जरूरत होती है तो नियमो और उपनियमों का सहारा लेकर पुलिस कुल बिक्री मूल्य का 60 प्रतिशत रुपया ले लेती है । 10 प्रतिशत वन विभाग ले लेता है पेड़ मालिक को बिक्री मूल्य का 30 प्रतिशत ही मिलता है उसी तरह से इजारेदार कम्पनियां उद्योगपति जल को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित करने के लिए काफी दिनों से प

स्मृति दीर्घा: संजीव 'सलिल'

स्मृति दीर्घा: संजीव 'सलिल' * स्मृतियों के वातायन से, झाँक रहे हैं लोग... * पाला-पोसा खड़ा कर दिया, बिदा हो गए मौन. मुझमें छिपे हुए हुए है, जैसे भोजन में हो नौन.. चाहा रोक न पाया उनको, खोया है दुर्योग... * ठोंक-ठोंक कर खोट निकली, बना दिया इंसान. शत वन्दन उनको, दी सीख 'न कर मूरख अभिमान'. पत्थर परस करे पारस का, सुखमय है संयोग... * टाँग मार कर कभी गिराया, छुरा पीठ में भोंक. जिनने अपना धर्म निभाया, उन्नति पथ को रोक. उन का आभारी, बचाव के सीखे तभी प्रयोग... * मुझ अपूर्ण को पूर्ण बनाने, आई तज घर-द्वार. कैसे बिसराऊँ मैं उनको, वे मेरी सरकार. मुझसे मुझको ले मुझको दे, मिटा रहीं हर सोग... * बिन शर्तों के नाते जोड़े, दिया प्यार निष्काम. मित्र-सखा मेरे जो उनको सौ-सौ बार सलाम. दुःख ले, सुख दे, सदा मिटाए मम मानस के रोग... * ममता-वात्सल्य के पल, दे नव पीढी ने नित्य. मुझे बताया नव रचना से थका न अभी अनित्य. 'सलिल' अशुभ पर जयी सदा शुभ, दे तू भी निज योग... * स्मृति-दीर्घा में आ-जाकर, गया पीर सब भूल. यात्रा पूर्ण, नयी यात्रा में साथ फूल कुछ