माँ नर्मदा की मनोव्यथा प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध " ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर जो मीठा पावन जल देकर हमें सुस्वस्थ बनाती है जिसकी घाटी औ" जलधारा सबके मन को भाती है तीर्थ क्षेत्र जिसके तट पर हैं जिसकी होती है पूजा वही नर्मदा माँ दुखिया सी अपनी व्यथा सुनाती है पूजा तो करते सब मेरी पर उच्छिष्ट बहाते हैं कचरा पोलीथीन फेंक जाते हैं जो भी आते हैं मैल मलिनता भरते मुझमें जो भी रोज नहाते हैं गंदे परनाले नगरों के मुझमें डाले जाते हैं जरा निहारो पड़ी गन्दगी मेरे तट औ" घाटों में सैर सपाटे वालों यात्री ! खुश न रहो बस चाटों में मन के श्रद्धा भाव तुम्हारे प्रकट नहीं व्यवहारों में समाचार सब छपते रहते आये दिन अखबारों में ऐसे इस वसुधा को पावन मैं कैसे कर पाउँगी ? पापनाशिनी शक्ति गवाँकर विष से खुद मर जाउंगी मेरी जो छबि बसी हुई है जन मानस के भावों में धूमिल वह होती जाती अब दूर दूर तक गांवों में प्रिय भारत में जहाँ कहीं भी दिखते साधक सन्यासी वे मुझमें डुबकी , तर्पण ,पूजन ,आरति के अभिलाषी सब तुम मुझको माँ कहते , तो माँ सा बेटों प्यार करो