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Showing posts from March 22, 2010

लो क सं घ र्ष !: नरेंद्र मोदी ने कानून-संविधान न मानने की कसम खा रखी है

गुजरात दंगो की जांच के लिए नियुक्त विशेष जांच दल के सामने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पेश होना था किन्तु वह जांच दल के सामने उपस्थित नहीं हुए। फरवरी 2002 में गुजरात में हजारों अल्पसंख्यकों का नरसंहार धर्म के आधार पर किया गया था। माननीय उच्चतम न्यायलय ने जाकिया की शिकायत पर विशेष जांच दल नियुक्त किया था। जाकिया का आरोप था कि मोदी व उनकी सरकार के मंत्री पुलिस व प्रशासनिक अधिकारीयों से मिलकर गुजरात में दंगे भड़काए थे और कत्लेआम कराया था। जब संविधानिक पदों के ऊपर बैठे हुए लोग इस तरह का कृत्य करेंगे और जांच एजेंसियों के समक्ष उपस्थित नहीं होंगे तो किसी साधारण आदमी से क्या उम्मीद की जा सकती है लेकिन अगर साधारण व्यक्ति को जांच एजेंसी के सामने उपस्थित होना होता और वह उपस्थित नहीं हुआ होता तो उसे होमगार्ड के जवान डंडे बाजी कर के उपस्थित होने के लिए मजबूर कर देते । हमारे लोकतंत्र में नरेंद्र मोदी , राज ठाकरे , बाल ठाकरे जैसे कानून

बिल्ली की कहानी..

कहते है की पुराने समय के जानवर भी बोलते थे॥ यह एक समय की बात है एक राजा था उसके तीन रनिया थी॥ लेकिन यह राजा का दुर्भाग्य था की उन तीन रानियों से एक भी औलाद नहीं पैदा हुयी। राजा बड़े चिंता में रहते थे। की हमारे राज्य का उतराधिकारी कौन बनेगा। एक दिन राजा को एक महात्मा जी मिले । राजा ने अपना दुखड़ा मुनिवर को सुनाया। तब मुनिवर ने कहा की हे राजां आप को पुत्र सुख तो लिखा है और यह भी लिखा है । की आप के एक ही औलाद होगा। और तीस रनिया तथा ३० पोते होगे। लेकिन आप को एक बिल्ली से शादी करना पडेगा। राजा को यह बात नागवार लगी । राजा वहा से उठ के चल दिए और मुनिवर भी चले गए । जब राजा को पुत्र की चिंता अधिक होने लगी तो लोगो के कहने पर राजा ने बिल्ली से शादी करने का निर्वे लिया। एक बिल्ली थी जो हमेशा पूर्णिमा को गंगा स्नान करने जाती थी और गंगा माँ से एक ही बार मांगती थी। की हे गंगे माँ हमारे एक लड़का पैदा हो और तीस बहुए और तीस पोते हो। राजा की शादी उसी बिल्ली से हो गयी आखिर कार बिल्ली गर्भवती हो गयी ये बात राजा को रानियों के द्वारा पता चला। तब राजा ने कहा की चलो ठीक है। तुम लोगो को तो कुछ होने वाला नहीं है

"उथले हैं वे जो कहते हैं"

किसी भी साहित्यिक रचना या रचना संग्रह को इमानदारी से पढने वाला पाठक अगर मिल जाता है और वो उस रचना पर अपनी राय भी व्यक्त कर देता है तो यह सोने पे सुहागा हो जाता है। उस संग्रह को फिर किसी दूजे पुरस्कार आदि की आवश्यकता ही नहीं होती। मेरे पूज्य पिताजी डॉ. जे पी श्रीवास्तव के काव्य खंड " रागाकाश" के प्रकाशन के लिये जब इस पर मैं वर्क कर रहा था तो कई सारी कठिनाइयां आ रही थीं। पहली तो यही थी कि मैं बगैर पिताजी की आज्ञा के उनकी धरोहर को छापना चाह रहा था। उनकी अपने दौर में लिखी गई कई सारी रचनायें, जिसमें कइयों के कागज़ भी पुराने होकर फटने लगे थे को सहेज कर मुम्बई तो ले आया था अब बस पिताजी की आज्ञा की देर थी। पहले जब उनका साहित्ययुग पूरे उफान पर था, देश-विदेश के बडे से बडे साहित्यकार आदि से मेल मिलाप था, तब परिवारिक परिस्तिथियों ने उनके किसी भी तरह के प्रकाशन सम्बन्धित कार्य को नहीं होने दिया। और जब परिस्थितयां सुधरी तो काफी देर हो चुकी थी, पूरा का पूरा युग मानों बदल गया था, फिर भी उनका लेखन सतत जारी रहा, आज भी पठन-पाठन वैसा ही है जैसा पहले था किंतु लेखन अब ज्यादा नहीं होता। इस दौर में क