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Showing posts from September 14, 2010

सर्वे : फर्राटेदार अंग्रेजी नहीं है सम्मान की गारंटी

नई दिल्ली/भोपाल. यदि आप यह सोचते हैं कि केवल अंग्रेजी बोलने से ही आपको सम्मान मिलेगा तो आप शायद गलत हैं। दैनिक भास्कर डॉट कॉम के देश के १७ शहरों में कराए गए सर्वे में 65 फीसदी लोगों ने यह विचार व्यक्त किए। हिंदी दिवस पर कराए गए इस सर्वे ने आम हिंदुस्तानी के मन में बरसों से बैठी इस मान्यता को ध्वस्त कर दिया है कि केवल फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना ही कहीं भी आपको सम्मान दिलाने की गारंटी बन सकता है। हालांकि, सर्वे में चौंकाने वाली यह बात भी निकल कर आई है कि 70 फीसदी लोग विभिन्न सरकारी और निजी कामों के दौरान भरे जाने वाले फॉर्म में हिंदी का विकल्प होने के बावजूद अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हैं। दिल्ली, मुंबई लखनऊ के अलावा मप्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा में हुए इस सर्वे में 2170 से अधिक लोगों ने भागीदारी की। इसी तरह एक अन्य प्रश्न के जवाब में अधिकांश लोग बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उच्च शिक्षा में भी हिंदी को एक विषय के रूप में रखने के पक्ष में हैं। 57 फीसदी लोगों ने इसमें सहमति जताई है जबकि 25 फीसदी लोग हिंदी को प्राइमरी स्कूल तक ही रखने के पक्ष में हैं। मीडिया पर हिंदी को विकृत करने के आरोप

मेरे दिल की जुबान है हिन्दी

62 करोड़ बोलते हैं और आप ? हिन्दी  दिवस पर हर बार की तरह कुछ परंपरागत किस्म की खबरों से आपका साबका होने ही वाला है। हिन्दी के खात्मे का मर्सिया पढ़ने और हिन्दी को बचाने के नाम पर चिंतन की सिर फुटौव्वल करने वाली गतिविधियां, चर्चा, परिचर्चाओं से संचार माध्यम अटने ही वाले हैं। अगले कुछ दिन हिन्दी के नाम पर आंसू बहाने वाले लोग हर ओर दिखने ही वाले हैं। लेकिन असली सवाल इनरस्मी गतिविधियों के बीच कहीं गुम है, क्या हमारी हिन्दी मरणासन्न है? क्या सचमुच हिन्दी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है? जवाब है बिलकुल नहीं। कम से इस सदी की ताकत के रूप में देखे जा रहे देश के भविष्य़ को देखते हुए तो बिलकुल नहीं। इस शक्तिशाली, संभावनाशील औऱ हमारे बड़े बाजार को देखते हुए तो कतई नहीं, क्योंकि पूरे देश में सहज संचार के लिए आज भी हिन्दी का कोई विकल्प नहीं है। इसे एक तथ्य के नजरिए से देखिए... आज के वैश्वीकृत बाजार का मूल मंत्र- थिंक ग्लोबल, गो लोकल - भी हिंदी के पक्ष में खड़ा है। शायद इसीलिए कुछ अमेरिकी बिजनेस स्कूल हिंदी सिखाने की पहल भी शुरू कर चुके हैं। कंपनियां हिन्दी पर जोर दे रही हैं। कई विदेशी विश्वविद्