मीडिया इन्डस्ट्री में सबसे कमजोर,लाचार और निरीह कोई है तो वो हैं राजदीप सरदेसाई। आपको जानकर ये हैरानी होगी कि सैलरी,शख्सीयत और शोहरत के लिहाज से जिस टेलीविजन पत्रकार को सबसे मजबूत माना जाता है,लोगों के बीच इसी तरह की इमेज है,वो अपने को पिछले एक साल से सबसे मजबूर और लाचार बताता आ रहा है। मौका चाहे जगह-जगह मीडिया सेमिनार के नाम पर स्यापा करने और छाती कूटने का हो या फिर 2G स्पेक्ट्रम घोटाले मामले में दिग्गज मीडियाकर्मियों के नाम आने पर मीडिया की साख मिट्टी में मिल जाने पर सफाई के मकड़जाल बुनने के,राजदीप सरदेसाई सीधे तौर पर मानते हैं कि अब एडीटर मजबूर है,मीडिया के भीतर जिस तरह के ऑनरशिप का मॉडल बना है,उसमें एडीटर बहुत कुछ करने की स्थिति में नहीं है। मैं उनके मुख से मालिकों के आगे एडीटर के मजबूर हो जाने की बात पिछले छ महीने में चार बार सुन चुका हूं। उदयन शर्मा की याद में पहली बार कन्स्टीच्युशन क्लब में सुना तो एकबारगी तो उनकी इस ईमानदारी पर फिदा हो गया। लगा कि इस शख्स को इस बात का मलाल है कि जैसे-जैसे गाड़ी और फ्लैट की लंबाई बढ़ती जाती है,पत्रकार होने का कद छोटा होता जाता है। फिर दूसरी बार