1990-91 में विश्व में एकध्रुवीय हो जाने और अमरीका का इसका अगुआ बन जाने के बाद से ही उसने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। लेकिन यूरोप और खासकर पूर्वी यूरोप पर उसका विशेष ध्यान है। इस अभियान में उसने सर्वप्रथम युगोस्वालिया को सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और मान्यताओं की अवहेलना करते हुए कई भागों में विभक्त कर दिया। इसके साथ ही उसका दूसरा निशाना उन राष्ट्रों पर था, जो पहले समाजवादी खेमों के सदस्य थे। इस मुहिम में इन राष्ट्रों को नाटो सैनिक संगठन में सम्मिलित करना शामिल थे। इसके साथ ही मध्य एशिया के राष्ट्रों और इनके माध्यम से कैस्पियन सागर के तेल सम्पदा पर अधिकार जमाना इनकी नीति का भाग था। शुरू में उसे कुछ सफलता भी मिली, जैसे कि बुल्गारिया, पोलैंड, रूमानिया आदि को नाटो का सदस्य बनाया गया और इनमें से कुछ में अमरीकी नाटो फौजी अड्डे भी स्थापित किये गये। लेकिन अभियान के इस क्रम में उसे बड़ा झटका ज्याॅर्जिया संकट के रूप में लगा। लम्बे समय से अमरीका उक्रेन को नाटो में शामिल करने के लिए प्रयत्नशील है। इस संबंध में उतार-चढ़ाव होता रहा है। उक्रेन में अभी-अभी राष्ट्रपति का