बीजरूप में आँखों में नहीं रहे, आँसू। संन्यासी के पास नहीं है, वैराग्य। माँ के पास नहीं है, वात्सल्य। नारी के पास नहीं है, नारीत्व। मर्द की जुबान का नहीं है, कोई अर्थ। राज्य के पास भी नहीं है, धर्म। न्यायालयों में नहीं है, न्याय। शिक्षालयों में नहीं है, शिक्षा। अधिकारी के नहीं हैं, कर्तव्य। किसी को पता नहीं है, अपना गन्तव्य। फिर भी तेरा मन्तव्य? सत्य का प्रकाश, ज्ञान की ज्योति, भ्रातृत्व का भाव, ईमानदारी का गुण, जन-जन में फैलाने का? फिलहाल बचाये रख, अपने पास, बीजरूप में, यही होगी, बहुत बड़ी उपलब्धि, झंझा के थमने पर, तेरे द्वारा बचाये गये बीज से, तेरे द्वारा बचायी गयी, लघु ज्योति से, मानवता की बेल, फलेगी-फूलेगी, लहलहायेगी लघु ज्योति से ज्यातिर्मय होकर, दुनियाँ को प्रकाशित कर देगी।