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Showing posts from August 1, 2011

हंस की गोष्‍ठी में नहीं जमा रंग, नामवर भी साधारण बोले

नामवर सिंह | सभी तस्‍वीरें मनोज गुप्‍ता की अशोक वाजपेयी ओम थानवी तसलीमा नसरीन, फ्रैंक हुजूर, पवन, रंजन ♦ विनीत कुमार हं स जैसी पत्रिका के 25 साल के इतिहास को इतने लिजलिजे और पनछोट तरीके से याद किया जाएगा, ये देख-सुनकर भारी निराशा हुई। हम हंस की रजत जयंती कार्यक्रम से लौटकर सदमे में हैं। हंस की वार्षिक संगोष्ठी, हिंदी साहित्य से जुड़ा अकेला कार्यक्रम होता है, जिसका इंतजार हमें मेले-ठेले की तरह कई दिनों पहले से होता है। इसकी बड़ी वजह तो ये है कि हिंदी और मीडिया के वे तमाम भूले-बिसरे चेहरे एक साथ दिख जाते हैं जिनकी हैसियत, जिंदगी और चैनल बदल चुके होते हैं और दूसरा कि संगोष्ठी में कुछ गंभीर बातें जरूर निकल कर आती हैं, जिस पर कि आगे विचार किया जाना जरूरी होता है। अबकी बार तो और भी 25 साल होने पर कार्यक्रम का आयोजन किये जाने का मामला था, सो लग रहा था कि कुछ अलग, बेहतर और गंभीर बातचीत होगी। निर्धारित समय से करीब एक घंटे बाद यानी छह बजे कार्यक्रम शुरू होने पर ये धारणा और भी मजबूत हो गयी कि अबकी बार तो हंस की यादगार संगोष्‍ठी होने जा रही है। वक्ता के तौर पर अकेले नामवर सिंह को अपनी बात रखनी थ