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Showing posts from April 14, 2011

एक है भिलाई के स्टील पुरुष जिन्होंने ब्लोगिंग को प्यार करना सिखाया है

एक है भिलाई के स्टील पुरुष जिन्होंने ब्लोगिंग को प्यार करना सिखाया है     भिलाई स्टील फेक्ट्री का एक नोजवान जिसकी बोडी फोलाद की और दिल मोम का बना हे, चेहरे पर मुस्कुराहट है ,और दिल दिमाग में ब्लोगिंग को प्यार के सूत्र में बाँधने का जूनून सवार है जी हाँ  इसी नोजवान का नाम बी एस पाबला है.  लोहे और स्टील में रहकर खुद को मोम बनाकर रखना और किसी के भी प्यार की हल्की सी भी गर्मी से खुद को पिघला डालना कोई मामूली फितरत नहीं इसके लियें इंसान को अपने सभी निजी जज्बात ,निजी झगड़े फसादों को ताक में रखना पढ़ता है और पाबला जी इसीलियें  धेर्य ,संयम से खुद को काबू में रखकर एक कामयाब ब्लोगर बमे  हैं . जी हाँ दोस्तों पाबला जी रायपुर की रविशंकर यूनिवर्सिटी से निकले और भिलाई स्पात संयत्र में टेलीक्म्युनेशन का कामकाज जा सम्भाला ,पाबला  जी ने अपने टेलीकम्युनिकेशन के हुनर का सदुपयोग किया और ब्लोगिंग की दुनिया में ज़ोर आज़माइश शुरू की ,खुद पाबला जी को भी पता नहीं होगा के वोह उनके इस हुनर और प्यार बांटते चलो के नारे के कारण विश्व की हिंदी ब्लोगिंग दुनिया के खुसूसी ब्लोगर बन जायेंगे पाबला जी का य

लो क सं घ र्ष !: उत्तर प्रदेश एस.टी.एफ की पोल खुली: फर्जी फंसाए गए कश्मीरी नवजवान सज्जादुर रहमान आरोप मुक्त

उत्तर प्रदेश में कचेहरी बम ब्लास्ट केस में उत्तर प्रदेश पुलिस व एस . टी . ऍफ़ ने पांच नवजवानों को फर्जी तरीके से पकड़ कर्र बंद कर दिया था । जिसमें तारिक काशमी आजमगढ़ , खालिद मुजाहिद जौनपुर २२ दिसम्बर 2007, सज्जादुर रहमान व मोहम्मद अख्तर को 27 दिसम्बर 2007 से जम्मू एंड कश्मीर से आफताब आलम अंसारी को 28 दिसम्बर 2007 को कलकत्ता से पकड़ कर कचेहरी बम विस्फोट कांड को हल करने का दावा किया था । 16 जनवरी 2007 को आफ़ताब आलम अंसारी के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण अंतर्गत धारा 169 सी . आर . पी . सी के तहत दोषमुक्त कर दिया गया था । इस वाद का विचारण माननीय विशेष न्यायधीश श्री शशांक शेखर ( एस . सी / एस . टी ) के नयायालय में हो रहा था । बचाव पक्ष के अधिवक्ता श्री मोहम्मद शुऐब ने आरोप पर कई बार बहस की जिस पर न्यायालय श्रीमान ने श्री चिरंजीव नाथ सिन्हा एस . टी . एफ तथा राजेश श्रीवास्तव ए . टी . एस को तलब कर कई सवाल पूछे जिसका संतोष जनक उत्तर उक्त

पहले खुद के गिरेबां में झांको.

आज एक परिपाटी बड़ी तेजी से सर उठती चली जा रही है और वह है किसी के मुहं से कुछ इधर उधर निकला नहीं कि लगे उसकी गर्दन पकड़ने.अभी हाल में ही अमर उजाला ने एक समाचार प्रमुखता से प्रकशित किया कि ''.  शहीदों की जाति बताने पर मचा सियासी बबाल''फिर समाचार आया कि ''सरनेम संधू भी नहीं लिखते थे भगत सिंह'' इस तरह के समाचार और बबाल शहीदों के परिजनों को तो दुःख पहुंचा सकते हैं किन्तु जहाँ तक इनसे आम जनता को कष्ट पहुँचने की व् उनकी भावनाएं आहत होने की बात भाजपा प्रवक्ता मुख़्तार अब्बास नकवी कर रहे हैं इसमें कोई दम नहीं दीखता क्योंकि ये आम जनता ही है जो वोट देते वक़्त अपनी जाति देखती है.जब नौकरी देने की बात आती है तो अपनी जाति वाले को प्रमुखता देती है.जब किसी किरायेदार को मकान देने की बात आती है तो अपनी जाति वाले में सुरक्षा देखी जाती है.योग्यता को कौन पूछता है अपने गिरेबां में यदि आम जनता देखे तो बताये कि जब वोट देने की बात आयी तो क्या सबसे पहले उसने अपनी जाति का व्यक्ति नहीं ढूँढा और जब वह मिला तो उसी को वोट दी नहीं क्या और जब वह नहीं मिला तो मजबूरी वश किसी और को वोट दी.क्य

जल स्टार के अंतर्गत संजय सेन सागर सम्मानित

जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए दैनिक भास्कर समूह द्वारा स्थापित पहला जलस्टार अवॉर्ड बीना के शिक्षक चंद्रप्रकाश तिवारी को दिया गया। बुधवार शाम भोपाल स्थित भास्कर कार्यालय में आयोजित गरिमामय समारोह में इस राज्यस्तरीय सम्मान आयोजित किया गया। देश 10 राज्यों से प्राप्त प्रविष्टियों के आधार राज्यस्तर पर चयन समितियों ने विजेताओं का चयन किया। इस अवसर में मध्यप्रदेश से 38 लोगों का चयन किया गया। जिसमे संजय सेन सागर जी जल जागरूकता के लिए सम्मानित किया गया. इस अवसर पर संजय सेन जी ने कहा की ''जल समस्या इतनी बड़ी भी समस्या नहीं है लेकिन इसे इतना बड़ा बना दिया गया है,क्योंकि आज बिसलरी पीने वालों को लगता है की जल संकट उन पर नहीं आएगा,लेकिन वो गलत सोचते है क्योंकि जल संकट की चपेट में सबसे पहले वही लोग आने वाले है अगर बिसलरी वाला बर्ग जल की महत्वता के लिए काम करता है तो यह अभियान और भी आसन हो जायेगा।

अपने ही प्रांत में उपेक्षित राजस्थानी

राजस्थानी नहीं राजस्थान की मातृभाषा ? राजस्थान के स्कूलों में हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती, पंजाबी, उर्दू और सिंधी माध्यम ही स्वीकार्य भाषा-भाषियों की दृष्टि से विश्व में सोलहवें तथा भारत में सातवें स्थान पर मानी जाने वाली भाषा राजस्थानी अपने ही प्रांत में उपेक्षित है। निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत बालक को उसकी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा दिए जाने का प्रावधान है और इसके लिए राजस्थान की प्राथमिक शिक्षा के लिए जिन सात भाषाओं को माध्यम के रूप में स्वीकारा गया है उनमें राजस्थानी शामिल नहीं है। प्रतिभागियों का मानना है कि इससे उनका हक अन्य प्रांतों के प्रतिभागी मार लेंगे और राजस्थान में शिक्षित बेरोजगारी बढ़ेगी। राजस्थान अध्यापक पात्रता परीक्षा में चालीस फीसदी अंक इन माध्यम भाषाओं के लिए निर्धारित किए गए हैं और प्रतिभागी को हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, गुजराती, सिंधी तथा उर्दू में से किन्हीं दो भाषाओं को क्रमशः प्रथम तथा द्वितीय भाषा के रूप में चुनना है। इन भाषाओं में राजस्थानी शामिल नहीं होने से एक ओर जहां राजस्थान में अनिवार्य शिक्षा कानून की अवहे