हममें से अनेक लोग, जो शिक्षित और भावुक हैं और अपने देश को प्यार करते हैं, इन दिनों दुखी हैं। हम देख रहे हैं कि हमारा देश सत्ता में बैठे लोगों की लूट और कुप्रबंधन का शिकार हो रहा है। एक तरफ रुपया गिर रहा है और औद्योगिक उत्पादन दर नकारात्मक हो गई है, वहीं दूसरी तरफ हमारा शीर्ष नेतृत्व संसद में साठ साल पुराने काटरून पर बहस कर रहा है। सरकार ने पूरे देश से जिस लोकपाल बिल का वादा किया था, उसकी उम्मीदें धूमिल हो रही हैं। आर्थिक सुधार अब एक विकल्प नहीं, सख्त जरूरत बन चुका है, लेकिन उसे लेकर भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। नीति निर्माण अचेत है। कॉलेज ग्रेजुएट्स और इंजीनियरों को वे जॉब भी नहीं मिल रहे, जो उन्हें दैनिक वेतनभोगियों जितना मेहनताना दे पाएं। भारत के इतिहास के सबसे बड़े घोटाले में लिप्त लगभग सभी लोग जमानत पर छूट चुके हैं और कोई नहीं जानता कि उनका दोष कब सिद्ध होगा, या कभी होगा भी या नहीं। लोग अक्सर पूछते हैं कि देश की दशा कैसे और कब बदलेगी? इसके लिए क्या किया जाना चाहिए? भूख हड़ताल, क्रांति, मीडिया स्टोरी, मतदाताओं की शिक्षा या कोई नया टीवी रियलिटी शो? दुर्भाग्य से इन समस्याओं के