मुझे अपने घर का आँगन व सामने की गली याद आती है , जहाँ कभी , किसी जमाने में मेले लगते थे । वो खिलौने याद आते है ,जो कभी बिका करते थे । छोटा सा घर , पर बहुत खुबसूरत , शाम का समय और छत पर टहलना , सबकुछ याद है । कुछ मिटटी और कुछ ईंट की वो इमारत , वो रास्ते जिनपर कभी दौडा करते थे , सबकुछ याद है । गंवई गाँव के लोग कितने भले लगते थे , सीधा सपाट जीवन , कही मिलावट नही , दूर - दूर तक खेत , जिनमे गाय -भैसों को चराना , वो गोबर की गंध व भैसों को चारा डालना , सबकुछ याद है । गाय की दही न सही , मट्ठे से ही काम चलाना , मटर की छीमी को गोहरे की आग में पकाना , सबकुछ याद है । वो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना , भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना , सबकुछ याद है । बैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली , वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना , सबकुछ याद है । पाठशाला में किताबें खोलना और छुपकर भाग जाना , दोस्तों के साथ बागीचों में दिन बिताना , सबकुछ याद है । नानी से कहानी की जिद करना ,मामा से डांट खाना , नाना का खूब समझाना , मीठे की भेली को चुराना और चुपके से निकल