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Showing posts from May 20, 2009

वक्त हालात और मैं

वक्त कुछ इस तरह मेहरबान गया आंधियां आती गई मैं आशियाँ होता गया सीखा न था जब चेह्चाहाता था बहुत ढल गया अल्फाज़ में तो बेजुबान होता गया ढूंढ लेता था अंधेरों में भी अपने आपको पर उजालो से मिला तो बदगुमान होता गया जब किया था कैद उसे था बहुत बाकी मगर रफ्ता रफ्ता वोह परिंदा हम जुबां होता गया आँधियों के साथ ऊंचा कुछ दिनों वो क्या उड़ा गर्द का राह था लेकिन आसमान तो होता गया

कभी कोल्डड्रिंक पीने के पैसे नहीं थे बिग बी के पास

कि सी ने सच ही कहा है, जिस व्यक्ति ने जीवन में संघर्ष नहीं किया, वो कभी बड़ा नहीं बन सकता और बड़ा बनने के लिए जीवन की छोटी-छोटी चीजों से सीख लेना बहुत जरूरी है। सदी के महानायक यानी अमिताभ बच्चन का जीवन भी कुछ ऐसे ही उतार-चढ़ाव से भरा था। बिग बी ने अपने ब्लॉग पर अपने जीवन के कुछ अनुभवों के बारे में लिखा है। उन्होंने अपने बचपन के उन दिनों का जिक्र किया है जब उनके पास कोकाकोला पीने के पैसे नहीं होते थे, दोस्तों की बर्थ-डे पार्टी में जाने के लिए अच्छे कपड़े नहीं होते हैं। अमिताभ ने लिखा कि उनके माता-पिता की आय काफी सीमित थी और उतने ही पैसों में वे अपने बच्चों को पालते थे। एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि दिल्ली के विज्ञान भवन में हर्बट वोन करांजन ने फिलहार्मोनिक ऑर्केस्ट्रॉ आयोजित हुआ था, मगर वे सिर्फ इसलिए वहां नहीं जा पाए थे क्योंकि उनके पास अच्छे कपड़े नहीं थे और जो कपड़े थे उनको ड्राय क्लीन करवाने के पैसे नहीं थे। बिग बी ने लिखा है कि उन्हें स्कूल का क्रिकेट क्लब ज्वाइन करना था, लेकिन मां तेजी बच्चन के पास इसके लिए दो रुपए (जी हां मात्र 2 रु.) भी नहीं थे। इससे बिग भी काफी निर

Loksangharsha: शान्ति चाहिए तो...

माननीय उच्चतम न्यायलय का कहना है ... सुखी जीवन हेतु ( हिन्दुस्तान अखबार से साभार )

ज़माना बीत गया

किस किस को बताएं हम खामोशी का सबब मुझको चुप रहते तो ज़माना बीत गया आंसू आँखों से भले न गिरे दिल को रोते तो ज़माना बीत गया वो खुश हो गए अगर तो मैं हंस लेता हूँ मुझको तो ख़ुद हँसे ज़माना बीत गया हर लम्हा तसव्वुर में उन्हें ही पाता हूँ उनसे हकीक़त में मिले तो ज़माना बीत गया जिस मंजिल की तलाश थी वो सफर में ही खो गई और मुझको सफर करते-करते ज़माना बीत गया मेरी तन्हाईयों में आज भी है वो बराबर के शरीक उनकी महफ़िल में तो गए ज़माना बीत गया अकेला मैं ही नही रोया खोकर उन्हें "उबैद" उनको भी रोते रोते ज़माना बीत गया अब्दुल्लाह

यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम....

रमिनवा कै लरिका बी .ऐ फ़ेल ,बंकी मा थान्हा प्रभारी है। समसदवा एम॰ए , पी॰एच॰ङी॰ उहैं करत उ चौकीदारी है ॥ यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम .... उ उतनै बड़ा आफिसर , वहिका जेतनै भारी पौव्वा है। नाही तौ केतनौ पढ़ा लिखा ,मोची है कउनौ नौव्वा है ॥ यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम .... दाँतन मा पीड़ा बहुत रहै। हम गउवें देखावै अस्पताल । मुल हमका का मालूम , इहाँ पर ब्याध बिछाये बैठ जाल॥ डॉक्टर हमका का मालूम बहु ङेरवाइस , सौ रुपया गाँठिस झाड़ लिहिस। हम दाँत बतावा ऊपर कै, उ नीचे केर उखाड़ दिहिस॥ यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम .... बाराबंकी से टिकस लिहेउँ , कउनौ विधि रेल पर जइस चढ़ेउँ । पीछे से याक रेला आवा , हम त्रिशंकु अस लटक गएऊ ॥ उई भीड़ मा कउनौ हमरी औ , केतनेव कै जेबिन काटि दिहिस। इए तिकाश है फर्जी धमकाइस , टीटिव सौ रुपया गाँठि लिहिस॥ यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम.... मोहम्मद जमील शास्त्री

इनकी मदद कीजिये...!!!

मैं ने भड़ास ब्लॉग पर इसको पढ़ा तो सोचा की मैं भी इनकी मदद कर दूँ और इनकी बात ज़्यादा से ज़्यादा लोगो तक पहुचाने की कोशिश करू इसीलिए मैं यह पोस्ट लिखा रहा हूँ, जो लोग इनकी मदद कर सकते हैं तो कृपया करके इनकी मदद करे..... ब्लागर बंधुओं से एक अपील!! अंकित माथुर: ब्लाग के सभी सदस्यों से सहायता हेतु एक अपील आदरणीय यशवंत भाई, एवं समस्त ब्लाग सदस्य गण। आप सभी से एक अपील है, मेरे परिचय में एक परिवार के साथ दुर्भाग्यवश एक अप्रत्याशित घटना घटित हो गई है। मामला कुछ यूं है। मेरे परिचित और उनके परिवार के कुछ सदस्य दिनांक ६ मई २००९ को मरुधर एक्स्प्रेस में एस ७ कोच संख्या में यात्रा कर रहे थे। अचानक ट्रेन टूंडला स्टेशन के आउटर पर कुछ समय के लिए रुकी व मेरे परिचित परिवार की पुत्र वधू श्रीमति कोमल तोतलानी परिवार के सदस्यों को बताकर टायलेट गईं। इसी दौरान ट्रेन चल दी, टूंडला के बाद २०-२५ मिनट तक भी जब वे वापस नहीं आईं तो परिवारीजनों द्वारा इनकी खोज की गई, पूरी ट्रेन में इन्हे खोजा गया लेकिन इनका कोई पता नहीं चल पाया । आगे पढे.....