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Showing posts from August 21, 2009

लो क सं घ र्ष !: मीडिया के खौफनाक दस्ते

उस दिन ट्रेन से लौट रहा था। जैसा कि स्टेशन पर ट्रेन रुकते ही अफरा-तफरी का माहौल हो जाता है, उसी दरम्यान किसी ने कसाब-कसाब चिल्लाया। हर शख्स की निगाहें खिड़की से चिल्ला रहे उस शख्स पर और जिस चार साल के बच्चे को वह सम्बोधित कर रहा था की तरफ गयी। अफरा-तफरी के माहौल में न जाने कहां से एक चुप्पी और फुसफुसाहट सी आयी और धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। हमने कसाब के बारे में काफी देर तक सोचा। और जिस भी निष्कर्ष पर पहुंचते वहां कहीं न कहीं मीडिया नजर आती। मीडिया ने इस तरह चिल्ला-चिल्लाकर यह नाम लिया कि आज हर शख्स इससे वाकिफ हो गया है। कुछ शब्द ऐसे हो जाते हैं जिनके संबोधन से पहले हमें बड़ी संजीदगी से अपने आस-पास देखना होता है। और अगर कहीं वह खुद के धर्म व निवास स्थान से जुड़ा हो तो और भी। ऐसा ही एक शब्द आजमगढ़ पिछले दिनों प्राइम टाइम में राष्ट्रीय उत्सुकता का विषय बना। जिन वजहों से आजमगढ़ जाना गया उन घटनाओं को बीते साल भर होने जा रहे हैं। पर घटनाएं जैसे-जैसे पुरानी हो रही हैं उस पर जमीं धूल की परत औरों के मन में इसके प्रति और कुंठा भरती जा रही है। जो भी हो आजमगढ़ आज मानवाधिकार हनन के सबसे बड़े मरकज के रुप

धीरे धीरे कनवा म प्रेम रस घोले रे॥

बादल कड़के बिजली चमके॥ मेघा तिव तिव बोले रे॥ आधी रात के सेज के उपरा ॥ पवन आय झकझोरे रे॥ धीरे धीरे कनवा म प्रेम रस घोले रे॥ पानी बरषे बादल बरषे ॥ नदिया हिलोरे रे॥ पापी papihaa जुएनव जूनी॥ piv पिव बोले रे॥ धीरे धीरे कनवा म प्रेम रस घोले रे॥ अचरा उडे चदरा उडे॥ मौसम बोली बोले रे॥ रतिया म बदरा ॥ देहिया टटोले रे॥ धीरे धीरे कनवा म प्रेम रस घोले रे॥