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Showing posts from October 2, 2009

लो क सं घ र्ष !: चीन से युद्घ करने की तमन्ना

1962 से पूर्व देश में हिन्दी - चीनी भाई - भाई का नारा लग रहा था वहीं तिब्बत में चीन के विरूद्व सीआईए की गतिविधियाँ तेज थी । चीन सरकार द्वारा भारत के शीर्ष नेतृत्व को कई बार अवगत कराया की उसके देश से होकर तिब्बत में सीआईए की गतिविधियाँ हो रही है । तिब्बत में सीआईए अपनी गतिविधियाँ कर चीन के ख़िलाफ़ षड़्यंत्र कर रहा है उसको रोकें । मजबूर होकर चीन ने तिब्बत में सीआईए की गतिविधियों को नष्ट कर दिया । भारत ने सड़क मार्ग से दलाई लामा को लाकर तिब्बत की निर्वासित सरकार हिमांचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थापित की जो आज भी चल रही है । चीन भारत युद्घ का मूल कारण यही था । आज अमेरिकन साम्राज्यवाद अपनी आर्थिक मंदी से उबरने के लिए चीन को नष्ट करना चाह रहा है स्वयं उसमें दम नही है कि वह चीन से युद्घ करे इसलिए ग़लत तथ्यों के आधार पर युद्घ की तैयारियों का प्रोपोगंडा कर किसी भी बहाने युद्घ करवा देना चाहता है जिससे ह

लघु कथा: समय का फेर -आचार्य संजीव 'सलिल'

समय का फेर गुरु जी शिष्य को पढ़ना-लिखना सिखाते परेशां हो गए तो खीझकर मारते हुए बोले- ' तेरी तकदीर में तालीम है ही नहीं तो क्या करुँ? तू मेरा और अपना दोनों का समय बरबाद कार रहा है. जा भाग जा, इतने समय में कुछ और सीखेगा तो कमा खायेगा.' गुरु जी नाराज तो रोज ही होते थे लेकिन उस दिन चेले के मन को चोट लग गयी. उसने विद्यालय आना बंद कर दिया, सोचा: 'आज भगा रहे हैं. ठीक है भगा दीजिये, लेकिन मैं एक दिन फ़िर आऊंगा... जरूर आऊंगा.' गुरु जी कुछ दिन दुखी रहे कि व्यर्थ ही नाराज हुए, न होते तो वह आता ही रहता और कुछ न कुछ सीखता भी. धीरे-धीरे गुरु जी वह घटना भूल गए. कुछ साल बाद गुरूजी एक अवसर पर विद्यालय में पधारे अतिथि का स्वागत कर रहे थे. तभी अतिथि ने पूछा- 'आपने पहचाना मुझे?' गुरु जी ने दिमाग पर जोर डाला तो चेहरा और घटना दोनों याद आ गयी किंतु कुछ न कहकर चुप ही रहे. गुरु जी को चुप देखकर अतिथि ही बोला- 'आपने ठीक पहचाना. मैं वही हूँ. सच ही मेरे भाग्य में विद्या पाना नहीं है, आपने ठीक कहा था किंतु विद्या देनेवालों का भाग्य बनाना मेरे भाग्य में है यह आपने नहीं बताया था

कविता सागर

कविता सागर हम तुम्हारे नाम की दिन रात मालाये जपे तुम हमेशा गैर को सजदा करो तो क्या करे! हम जुनुने इश्क में तुमको समझते है खुदा तुम सरे बाज़ार यू रुशवा करो तो क्या करे ! दे दिया तन ,मन तुम्हारे नाम लिख दी जिन्दगी तुम दरो दिवार का सोदा करो तो क्या करे जब दिया तुमने हमें पैगामे नफरत ही दिया ! अऊर उस पर प्यार का दावा करो तो क्या करे ! कुंवर समीर शाही

HAMARI AYODHYA..

हमारी अयोध्या .... अयोध्या से महज ३२ किलोमीटर दूर मेरा गांव है बचपन से ही अयोध्या से धार्मिक व पारम्परिक नाता जुड़ गया मेला ठेला नहान परिकर्मा आदि जिन्दगी के अहम् हिस्सों में शामिल हो गए थे !मेरे बचपन में अयोध्या इतनी चर्चित नहीं हुई थी ! जितना की १९९० के बाद हुई !उत्तर परदेश को छोड़ कर किसी प्रान्त में चले जाईये !अयोध्या का नाम लेते ही लोग बाग़ उसका सीधा पता रामजन्म भूमि -बाबरी मस्जिद अपने आप समझ जाते है ! जिस नगर को शांति का प्रतीक माना जाता था वह १९९० के बाद सैनिक छावनी सा नज़र आने लगी !सुरक्षा तामझाम पर अब तक कई करोड़ खर्च हो चुके है आज नजदीक से देखने पर सबको लगता है की यह सुन्दर तीर्थ उजड़कर बिखर रहा है जिस अयोध्या में सभी जातियों के पंच्यती मंदिरों व सभी धर्मो के केन्द्रों पर खुशिया साफ झलकती थी !वंहा अब मायूशी किसी से छुपाये नहीं छुपती है !बर्षो से रंगाई -पुताई को तरश रही भब्य इमारते व पूरा परिबेश बिना कुछ कहे ही सब कुछ कह रहा है !अयोध्या बिबाद के उभार के बाद मेरा जुडाव कुछ जादा ही हो गया !एक पत्रकार के रूप में अयोध्या में हुए तमाम बवाल से लेकर बाबरी विध्वंस भी देखा है !पर लगातार