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Showing posts from June 10, 2010
  English और मुआवजे की जिंदा हैं... शिकायतें खूब,पर दोषी... यह कहां का इंसाफ है..! मिले 710 करोड़, हो गए तीन... आखिर कब मिलेगी सजा रिपोर्ट के नाम पर खेल उपयोगी हो सकता है... झीलों के शहर को जिंदा... 25 साल की लंबी रात भोपाल गैस त्रासदी - झीलों का शहर जब बना... गैस पीड़ितों का भोपाल उलझी हुई है भोपाल कांड... पहले दिन डाली... गैस त्रासदी की बच्चों... भोपाल गैस त्रासदी पर... सोचकर ही सिहर उठता हूं मौत की कहानी, डॉक्टर की... जल में आज भी घुला है...   25  साल। 1984 से शुरू हुए इन पच्चीस सालों में पूरी एक शताब्दी, 20 वीं का अंत हुआ है औऱ एक नई शताब्दी का आगाज हुआ। दुनिया के इतिहास में जब इन 25 सालों का जिक्र होगा तो इसमें यकीनन बहुत सारी बातें होंगी। कुछ सफेद-कुछ काली। मगर इनमें सबसे स्याह लफ्जों में होगी भोपाल की कहानी। दुनिया की सबसे विकराल मानवीय त्रासदी की कहानी-1984 की कहानी। एक रात की कहानी। 2-3 दिसंबर की आधी रात की कहानी। जिस रात में अपने-अपने घरों में सोए हजारों बेगुनाए लोगों को बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड ने जहर सुंघाकर मार डाला गया औऱ लाखों ल

डर त्रासदी का नहीं, भरोसा उठ जाने का है

श्रवण गर्ग भोपाल गैस त्रासदी को लेकर अदालत द्वारा सोमवार को दिए गए फैसले के बाद से नई दिल्ली स्थित सत्ता के गलियारों में सांसें उखड़ी हुई हैं। फैसले के बाद चिंता इस बात को लेकर शायद कम है कि त्रासदी के कोई 25 वर्षो के बाद भी शारीरिक यातनाएं भुगत रहे लाखों बाशिंदों या कि उन हजारों लोगों के परिवारों के साथ, जिनकी जानें चली गई थीं, घोर अन्याय हुआ है। ज्यादा चिंता फैसले के कारण उपजने वाले राजनीतिक परिणामों, जिनमें कि बहुचर्चित एटमी जनदायित्व बिल का भविष्य भी शामिल है, को लेकर है। 25 वर्षो में भोपाल और दिल्ली में कई सरकारें आईं और चली गईं पर दोषियों को सजा दिलाने या वारेन एंडरसन को पकड़कर भारत लाने की मांग को लेकर समूची लड़ाई गैस पीड़ित और कुछ संगठन ही लड़ते रहे, सरकारें तो बस मंत्रालयों से आश्वासन लीक करती रहीं। भोपाल की त्रासदी न तो हिरोशिमा और नागासाकी की तर्ज पर राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में प्रामाणिकता के साथ शुमार हो पाई और न ही पीड़ितों के प्रति सहायता और सहानुभूति के दरवाजे कभी पूरी तरह से खुले पाए गए। समूचे देश को पहले तो वर्षो तक बोफोर्स कांड में व्यस्त रखा गया और जनता को क्वात्रोक्क

लो क सं घ र्ष !: आर्थिक जीवन और अहिंसा -3

मानवीय प्रगति का लम्बा इतिहास काफी अंशों तक और कई अर्थों में स्वैच्छिक एवं स्वतंत्र वरण-चयन के प्रयासों का इतिहास हैं। फलतः ऐसे सहज स्वतंत्र सामाजिक जीवन को सर्व-संगत, सर्व-सुलभ, जन-जन का अमिट और अक्षुण्य अधिकार माना जा सकता है। अधिकार के रूप में प्राप्ति को ठोस सच्चाई में बदलने के अनेक उतारांे-चढ़ाओं का इतिहास अहिंसा के प्रसार का इतिहास माना जा सकता है। मनुष्य जैसे सामाजिक जीव के बहुआयामी अस्तित्व का कोई भी भाग जिसे विचारण विवेचन की सुगमता के लिए कुछ अशों तक अलग-अलग करके देखने की परिपाटी बहुप्रचलित हो चुकी है। यहाँ तक कि अनेक लोग इस पृथकीकरण को यथार्थ का प्रतिविम्ब तक मान बैठते हैं। एक ओर स्वैच्छिक-स्वतंत्र वरण की गई तथा दूसरी ओर इनको कुचल-मसल कर आरोपित बलात् या जबरन थोपी गई जीवन-यात्रा के संघर्ष से अछूता नहीं रह पाता हैं। यह हिंसा प्रतिहिंसा और अहिंसा का संघर्ष आदिकाल से मानवीय-सामाजिक जीवन और उसकी व्यवस्था में पग-पग पर परिलक्षित होता आया है। बेशक, इन्सान वर्तमान समय की असंख्य विसंगतियों विद्रूपताओं और त्रासदियों के उपरान्त भी अनेक अर्थों में एक गौरव पूर्ण और निहित संभावनाओं को सृजनात

लो क सं घ र्ष !: रात गंवाई जाग कर, दिवस गवायों सोय

सुख, दुख, हर्ष, विषाद को व्यक्त करने का अधिकार सभी को है, परन्तु इनके लिये कुछ शर्तें हैं, कुछ शिष्टाचार हैं। आजकल शादी विवाह एँव अन्य अवसरों पर ‘हर्ष-फायरिंग‘ का बड़ा प्रचलन हैं। यह स्टेटस- सिंबल बन गया है। परन्तु ऐसा क्या हर्ष जो दूसरों के दुख का कारण बने- ‘ई डोलत हैं, मगन हवे, उनके फाटत अंग‘। एक साथ कई जिलों से इस प्रकार की खबरें आई है अखबार लिखता है हर्ष फायरिंग में शनिवार को फैजाबाद में दो, रविवार को बलारामपुर व हरदोई में एक एक मौते हो चुकी हैं। बेनीगंज क्षेत्र में रात द्वारचार के समय हुई फायरिंग से दुल्हन के भाई की मौत हो गई। घर में कोहराम मच गया। बारात बिना दुल्हन के ही बैरंग वापस लौट गई। अम्बेडकर नगर जिले में द्वारपूजा के दौराल हो रही फायरिंग के बीच गोली से मांगलिक कार्य करा रहे पुरोहित गंभीर रूप से घायल हो गये। भगदड़ मच गई, कन्या पक्ष के लोगों नें बारातियों की जम कर पिटाई की। नशे में घुत राजेश उपाध्याय , फायरिंग के समय नाल ऊपर नहीं उठा सके थे। यह तो फायरिंग की बात हुई। अन्य बाते- मैरिज हालों में कार्यक्रम हमेशा देर से शूरू होते हैं।, तेज आवाज की म्युजिक, नाच-गानों की उचक-फांद, आ