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Showing posts from August 29, 2009

लो क सं घ र्ष !: साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष की मुश्किलें

'छोड़ दो समर जब तक न सिध्दि हो रघुनन्दन'-ये पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मशहूर कालजयी कविता 'राम की शक्तिपूजा' की हैं। कृतिवास रामायण की रामकथा से प्रेरित यह कविता तत्कालीन उपनिवेशवादी पूँजीवाद की अन्यायपूर्ण शक्तिमत्ता के संदर्भ को धरण करने वाली है। उपनिवेशवादी सत्ता-प्रतिष्ठान इस कदर शक्तिशाली था कि आजादी के संघर्ष की जीत होना कई बार असंभव लगने लगता है। 'अन्याय जिधर है उधर शक्ति' कहते हुए 'शक्तिपूजा' के राम की ऑंखों में ऑंसू आ जाते हैं। वे ऐसे युध्द को चलाने में अपनी असमर्थता जाहिर करते हैं जिसमें हार पर हार होती जाती है। हालांकि रावण की पराजय के बाद राज्य पाने का अभिलाषी विभीषण्ा राम को युध्द के लिए उत्तेजित करने की भरपूर कोशिश करता है। उन्हें उनका किया वादा याद दिलाता है और रावण द्वारा सीता को दुख पहुँचाने की बात कर राम के मर्म पर चोट करता है, लेकिन राम पर विभीषण का असर नहीं होता। वे सविनय कहते हैं-'मित्रवर विजय होगी न समर'। निराला के राम के लिए जीत का अर्थ सीता को मुक्त कराके विभीषण को राज दे देना भर नहीं है। वे शक्ति के उस खेल को ब

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

जिंदा रहने की हमको अब चाहत नही.......

जिंदा रहने की हमको अब ... ............चाहत नही............. जिंदगी ऊब करके .... ........कफ़न दे गयी......... उसके पल्लू में बंधकरके जायेगे..हम प्यार की गाँठ जीवन की कब खुल गयी.... याद आयेगे हम तो दुआ मांग लेना॥ हंस के खुशिया का तोह्पा दे जायेगे हम... बहते बहते न जाने किस धार में... तेरी जीवन की लयदूसरी मिल गयी... धोखा खाने के काबिल तो हम थे नही॥ ठीक है जो हुआ भूल जाना उन्हें॥ अपना जीवन सजा के रख लेना तुम॥ तेरे जीवन की दूजी कड़ी दिख गयी॥

बाल सखा

बाल सखा क्यो भूल गए॥मुझे॥ वह बचपन का खेल॥ साथ हमेशा रहते थे॥ था अनोखा मेल॥ खेल कूद करते रहे॥ होती अनोखी बातें॥ मिल बात कर खाते थे॥ बात बिताती राते,, किस्मत करवट बदला। चले गए कुछ दूर॥ उनसे मिलाने उनके घर पहुचा॥ बोले कौन हुजूर... बीती बातें ताज़ा करने को॥ मैंने छेदी बातें॥ अधिक समय अभी नही है... फ़िर करना मुलाकाते॥ आशा की घथारी खुल ॥ ममता दिया उडेर ॥ बाल सखा क्यो भूल गए॥मुझे॥ वह बचपन का खेल॥

लो क सं घ र्ष !: छायानट का सम्मोहन...

व्याकुल उद्वेलित लहरें , पूर्णिमा - उदधि आलिंगन । आवृति नैराश्य विवशता , छायानट का सम्मोहन ॥ जगती तेरा सम्मोहन , युग - युग की व्यथा पुरानी। यामिनी सिसकती - काया , सविता की आस पुरानी। योवन की मधुशाला में , बाला है पीने वाले। चिंतन है यही बताता , साथी है खाली प्याले ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '