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Showing posts from September 14, 2009

नवगीत:: अपना हर पल है हिन्दीमय --संजीव 'सलिल'

नवगीत: संजीव 'सलिल' अपना हर पल है हिन्दीमय एक दिवस क्या खाक मनाएँ? बोलें-लिखें नित्य अंग्रेजी जो वे एक दिवस जय गाएँ... निज भाषा को कहते पिछडी. पर भाषा उन्नत बतलाते. घरवाली से आँख फेरकर देख पडोसन को ललचाते. ऐसों की जमात में बोलो, हम कैसे शामिल हो जाएँ?... हिंदी है दासों की बोली, अंग्रेजी शासक की भाषा. जिसकी ऐसी गलत सोच है, उससे क्या पालें हम आशा? इन जयचंदों की खातिर हिंदीसुत पृथ्वीराज बन जाएँ... ध्वनिविज्ञान- नियम हिंदी के शब्द-शब्द में माने जाते. कुछ लिख, कुछ का कुछ पढने की रीत न हम हिंदी में पाते. वैज्ञानिक लिपि, उच्चारण भी शब्द-अर्थ में साम्य बताएँ... अलंकार, रस, छंद बिम्ब, शक्तियाँ शब्द की बिम्ब अनूठे. नहीं किसी भाषा में मिलते, दावे करलें चाहे झूठे. देश-विदेशों में हिन्दीभाषी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएँ... अन्तरिक्ष में संप्रेषण की भाषा हिंदी सबसे उत्तम. सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन में हिंदी है सर्वाधिक सक्षम. हिंदी भावी जग-वाणी है निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ... ********************

बगल वाली बबुनी रोजी मारे ताना॥

जानू कहा हेरानू बैरी भावा ज़माना॥ बगल वाली बबुनी रोजी मारे ताना॥ पूछे सवाल दिल जब॥ अंखिया बहावे आंसू॥ तोहरी फिकर लगी बा॥ तोहरे बात सोचू॥ भावे न खाना पानी॥ सूचय न कौनव तराना॥ पागल बनावे लोग्वय..अम्मा बाबू डाटे ॥ कथरी बिरवे हमका..रतिया लाग काटे॥ कैसे हम पाउब तोहका॥ आवत नही फसाना॥

सजाते रहेगे..

आते रहेगे चमचमाते रहेगे॥ सदा तेरी कलियाँ खिलाते रहेगे॥ गीत गाते रहेगे मुस्कुराते रहेगे॥ चमन को बागो में भवरे हज़ार आते है॥ पसंद अपनी चुनते है कभी मायूस जाते है॥ अपने दामन को बचाए जाप करते है॥ बगल से तेरे हजारो बार गुजरते है॥ तेरे संग जीवन बिताते रहेगे॥ सलामे इश्क चढाते ही बुखार आने लगता है॥ तेरी निगाहों से नशा छाने लगता है॥ मुस्कराने पर तेरे गगन मुस्कुरा देता है॥ तिरछी निगाहों से जुल्मी निहार होता है॥ तेरी बगिया में पौधा लगाते रहेगे॥ पाकर उसी में तुझको उड़ने लगा गगन में॥ स्पर्श से तुम्हारे जियरा लगे मगन से॥ सजा के हरदम रखता तेरी मई क्यारी को॥ हवा न आने देता बंद करता मई जाली को॥ तेरी डगर पर पुष्प जल बिछाते रहेगे॥