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Showing posts from May 5, 2010

लो क सं घ र्ष !: मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी

राजनैतिक एँव समसामयिक विषयों पर बातें कहाँ तक हों, आइये कुछ गंभीर विषयों पर सैधांतिक चर्चा भी करें। आध्यात्मिकता , नैतिकता एवं धार्मिकता पर आज कल के नौजवान, जो ‘‘ईट, ड्रिंक एण्ड बी मेरी‘‘ पर विश्वास रखते हैं, नाक भौं सिकोड़ते हैं, सोचने की बात है कि मौज-मस्ती शराब, जुआ, मारफिया का सेवन, नाचगाना एवं धूम्रपान आदि चाहे ऐसा आता है जब इन में लिप्त व्यक्ति अपने को संतुष्ट महसूस कर सके ? शायर ग़ालिब चाहे जितने बड़े दार्शनिक हों, उन्हों नें अपने कृत्यों के शायद बचाव के लिये ही ये शेर कहा होगा। अगले वक़तो के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो जो मय व नग़मा को अन्दोह रूबा कहते हैं उन्होंनें शराब व संगीत को बर्बाद करने वाली चीजें नहीं माना, उल्टे पुराने लोगों की हंसी उड़ाई। नौजवान वर्ग नें इस ‘लाजिक‘ को ‘बक-अप‘ भी खूब किया, लेकिन मज़हब नें इन चीजों पर जो पाबंदी लगाई आप उसका चाहे जितना मजा़क उड़ाये, ज़माना बदलने से बहुत सी बुनियादी वास्तविकतायें कभी नहीं बदलती। कोई भी समझदार व्यक्ति नशे में कही गई ग़ालिब की इस भड़काऊ बात से सहमत नहीं हो सकता, हाँ शेर के अन्दाज़ को पसंद कर सकता है। अब
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