कभी कभी सोचता हू कि हिंदुस्तान का सबसे बड़ा दर्द क्या है। सडा हुआ सिस्टम, गला हुई राजनीति या फिर बढती हुई लोगो की तादाद। क्या हो सकता है हिंदुस्तान का दर्द। आतंक के सामने घुटने टेक देने की प्रवत्ति, या बेडियो में जकडा हमारा इतिहास। आजादी के केवल ६० सालो के भीतर ही हम फिर गुलाम बन गए है और इस बार गुलाम बनने वाला कोई बाहरी आतताई नही बल्कि हमारी सोच है। ये वही सोच है जो पीढी दर पीढी हमारे खून में बहती चली आ रही है। जो देश आक्रमण करना नही जानता अन्याय का प्रतिकार करना नही जानता, धीमे धीमे खत्म होने लगता है। हम डरपोक लोगो ने पिछले दस हजार सालो में एक ही हमला किया वो भी किवदंती बन चुके राम के साथ मिलकर। वरना तो हम हमले झेलते आए है। एक फ़िल्म हू तू तू देखिये, इसमे एक सीन में मास्टर जी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर की और इशारा करते हुए कहते है कि आजादी अगर इनकी अदा से मिलती तो आज देश की तस्वीर कुछ और ही होती। अमेरिका और हम अति का शिकार हुए है। उसने बन्दूक के बल पर स्वतंत्रता हासिल की और हमने अहिंसा के बल पर। अमेरिका ताकत के दम पर दुनिया को गरियाने लगा और हम इतने अहिंसक हो गए की अपनी सुरक्षा भी नही