भारत माता भाल रचे कुंकुम केसर, निज हाथ में प्यारा तिरंगा उठाये। राष्ट्र के गीत बसें मन में, उर राष्ट्र के ज्ञान की प्रीति सजाये। अम्बुधि धोता है पाँव सदा, नैनों में विशाल गगन लहराए। गंगा यमुना शुचि नदियों ने, मणि मुक्ता हार जिसे पहनाये। है सुन्दर ह्रदय प्रदेश जहां, हरियाली जिसकी मन भाये । भारत माँ शुभ्र ज्योत्सनामय, सब जग के मन को हरषाये। हिम से मंडित इसका किरीट,गर्वोन्नत गगनांगन भाया। उगता रवि जब इस आँगन में, लगता सोना है बिखराया। मरुभूमि व सुन्दरवन से सज़ी, दो सुन्दर बाहों युत काया। वो पुरुष पुरातन विन्ध्याचल, कटि- मेखला बना हरषाया । कण कण में शूर वीर बसते, नस नस में शौर्य भाव छाया। हर तृण ने इसकी हवाओं के, शूरों का परचम लहराया । इस ओर उठाये आँख कोई, वह शीश न फिर उठ पाता है। वह दृष्टि न फिरसे देख सके, जो इस पर जो दृष्टि गढ़ाता है । यह भारत प्रेम -पुजारी है, जग हित ही इसे सुहाता है । हम विश्व शान्ति हित के नायक, यह शान्ति दूत कहलाता है। यह विश्व सदा से भारत को, गुरु जगत का कहता आता है। इस युग में भी यह ज्ञान ध्वजा, नित नित फहराता जाता है। इतिहास ब