मेरे पिता जी को समर्पित वो जो हैं मेरे सपनों को सच करने वाले मेरी छोटी बड़ी तकलीफों में सहारा देने वाले मेरा हक़, मेरा गुरूर, मेरी प्रतिष्ठा, मेरी आत्मा नहीं भुला सकता वो पापा हैं हमारे उनके कन्धों पर बैठकर ही ऊंचाई का अंदाजा लगाया था मैंने अंधेरे रास्तों, कच्ची पगडंडियों पर ऊँगली उनकी थम सहारा पाया था मैंने कैसा होता है हीरो कहानियों का पूछा था जब माँ से मैंने मुस्कुरा कर उनकी आंखों का इशारा पापा की तरफ़ पाया था मैंने॥ ज्ञानेंद्र, अलीगढ