Skip to main content

Posts

Showing posts from April 18, 2010

लो क सं घ र्ष !: जहां बाजू सिमटते हैं, वहीं सय्याद होता है।

डा0 इकबाल ने कभी अपनी एक कविता की पंक्ति में कहा था कि यूनान, मिस्र, रोम सभी मिट गये लेकिन हिन्दुस्तान का नामो निशान अब भी बाकी है। आज की बात अगर कही जाय तो सच यह है कि हम में उभरने की संभावनायें देखकर अनेक देश हम को मिटाने के लिये तरह-तरह की चालें चल रहे हैं। पड़ोस के और दूर के देश भी कभी खुलकर और कभी छुपकर हम पर वार करते हैं। पड़ोस की दास्तान मालूम ही है, पाकिस्तान से कई युद्ध भी हुए, कई बार सुलह हुई, ताशकन्द और शिमला में बाते हुई, आगरा में कोशिश हुई, लाहौर बस यात्रा की गई लेकिन बात वहीं की वहीं रही। तिब्बत तथा दलाई लामा को लेकर चीन से खटापटी जो 1962 से शुरू हुई अब भी किसी न किसी रूप में जारी है। श्रीलंका से भी तमिलों व शान्ति सेना को लेकर दिलों में सफाई नहीं आ सकी। बंगला देश से कभी बनती है कभी घुसपैठ और पानी को लेकर बात बिगड़ जाती है। नेपाल हमारा मित्र था लेकिन प्रचण्ड को लेकर तनाव गले की हड्डी बना। बहुत समय तक रूस हमारा सच्चा मित्र बना रहा, फिर रूस खण्डों में बटा, भारत की नीतियां भी गड़बड़ायी। जाहिर शाह के जमाने तक अफगानिस्तान विश्वसनीय था, अब जो हाल है देख ही रहे है